7. सूक्ष्म योग व्यायाम क्रियाएँ (20-30 मिनटों का कार्यक्रम)


स्वास्थ्य की रक्षा में सूक्ष्म योग व्यायाम क्रियाओं का बड़ा महत्व है | ये शरीर की मलिनता दूर कर, संबंधित अवयवों को स्फूर्ति प्रदान करती हैं | सभी लोग सूक्ष्म योग क्रियाएं कर सकते हैं | योग शिक्षण के केन्द्रों में हर दिन सामूहिक रूप से सूक्ष्म योग क्रियाओं के शिक्षण की कक्षाएं चलाना आवश्यक है | इससे सभी लोग लाभ उठा सकेंगे |

काम करने और खेलने के पहले शरीर के संबंधित अवयवों को सूक्ष्म चेतनता की जरूरत होती है | योगाभ्यास के पहले भी ऐसी सूक्ष्म चेतनता की आवश्कता पड़ती है | स्व. धीरेन्द्र ब्रहमचारीजीने सूक्ष्म योग क्रियाओं का शिक्षण दिया | देश-विदेशों में अनेक शिक्षण शिविरों का संचालन किया। आंध्र-प्रदेश के पूज्य योगासनाचार्य श्री दीक्षुतुलजीने प्रदेश के कई साधकों को सूक्ष्म योग क्रियाओं की शिक्षा दी | उनके शाखा केन्द्रों में सूक्ष्म योग क्रियाओं का शिक्षण कार्य शुरू हुआ। यह शिक्षण कार्य यहाँ के कार्यक्रमों में प्रमुख बन गया | वर्षों से ये वर्ग यहाँ चलाये जा रहे हैं | इस शिक्षण कार्य के अनुभव के आधार पर 1987 ई. से पाठ्यक्रम में विशेष परिवर्तन कर, प्रयोजन पर अधिक ध्यान देकर हजारों को हम शिक्षित कर रहे हैं | सूक्ष्म योग क्रियाओं के शिक्षण संबंधी यहाँ प्रचलित नये पाठ्यक्रम को इस ग्रंथ के द्वारा हम सभी भारत वासियों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं |

सूक्ष्म योग क्रियाएं बैठ कर करनी चाहिए | जो नीचे नहीं बैठ सकते वे कुर्सी या खाट पर बैठ या खड़े रह कर कर सकते हैं। मन को लीन करें तो पूरा लाभ मिलेगा | भोजन करते ही तुरंत ये क्रियाएं नहीं करनी चाहिए।

सूक्ष्म योग क्रियाओं का संबंध शरीर के अवयवों से रहता है | इसलिए अवयवों के क्रम के अनुसार, सूक्ष्मयोग क्रियाओं का संक्षेप में विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है | जिस अवयव से सूक्ष्म योग क्रिया संबंधित है, उस अवयव पर मन को केन्द्रित करना आवश्यक है | हर क्रिया शक्ति के अनुसार 15 से 60 सेकंड तक करनी चाहिए |
सूक्ष्म योग व्यायाम क्रियाओं का क्रमबद्ध विवरण

1. योग प्रार्थना

बैठ कर दोनों हाथ जोड़े | दोनों अँगूठे मिला कर कंठ का स्पर्श करते हुए नमस्कार की मुद्रा में योग प्रार्थना करें | मन शांत रहे । श्वास सामान्य रूप से चले । प्रार्थना के शब्दों का उच्चारण करते समय श्वास बाहर छोड़े।

लाभ —
मन की चंचलता दूर होगी और उसे स्थिरता प्राप्त होगी | चित्त एकाग्र होगा | ह्रदय की शुद्धि होगी |

2. भस्त्रिका क्रियाएं

ये क्रियाएँ श्वास प्रश्वास के द्वारा शरीर के अवयवों की शुद्धि करती हैं |

1) भस्त्रिका :

दोनो नासिका रंधों से श्वास जल्दी-जल्दी, तेजी से अन्दर लें और छोडें|

2) चंद्राग भस्त्रिका :

दायाँ नासिका रंध्र बंद कर केवल बांयें नासिका रंध्र से हवा बड़ी तेजी से लें और छोड़े |

3) सूर्याग भस्त्रिका :

बायाँ नासिका रंध्र बंद कर, दायें नासिका रंध्र से हवा बड़ी तेजी से लें और छोड़े।

4) सुषुम्ना भस्त्रिका :

बाये नासिका रंध्र से बड़ी तेजी से हवा छोड़े और लें । तुरंत दायें नासिका रंध्र से बड़ी तेजी से हवा छोडें और लें । इस प्रकार बारी-बारी से नासिका रंध्र बदलते रहें |

लाभ –
शरीर के अंदर का मालिन्य दूर हो कर अवयवों की कार्य शक्ति में वृद्धि होगी और उन्हें स्फूर्ति मिलेगी |

3. मस्तिष्क से संबंधित क्रियाएँ

इन क्रियाओं को करते समय ध्यान रहे कि श्वास कंठ तक ही पहुँचे | कंठ पार कर अंदर न जाये |

1) कंठ शुद्धि :

रीढ़ की हड़ी एवं सिर को सीधे रखें | सामने की ओर देखें । श्वास तेजी से लें और छोड़ें | कंठ पर ध्यान दे | इससे स्वर मधुर होगा। आवाज से संबंधित समस्याएं कम | होंगी | कष्ठ साफ रहेगा |

2) आत्मशक्ति की वृद्धि :

सिर ऊपर करें और तेजी से साँस लें और छोड़े | शिखा मंडल पर ध्यान दें | इससे आत्मशक्ति बढ़ेगी | भय दूर होगा।

3) स्मरणशक्ति का विकास :

सिर को सामने की ओर आधा झुकावें । तेजी से साँस लें और छोड़े | मन को सिर के मध्य भाग पर केन्द्रित करें | इससे स्मरण शक्ति की वृद्धि होगी।

4) बुद्धि व मेधाशक्ति का विकास :

सिर को पूरा झुका कर ठोडी छाती से लगावें । आंखे बंद करे | जल्दी, जल्दी तेजी से सांस लें और छोड़ें । भूकुटि के बीच ध्यान दें | इससे मेधाशक्ति का विकास होगा | एकाग्रता बढ़ेगी |

4. तनाव (टेन्शन) कम करने की क्रिया

भौहें ऊपर उठावें। भाल में झुर्रियाँ लावें । 5 सेकंड तक इस स्थिति में रहें । चार-पाँच बार यह क्रिया करें | श्वास सामान्य रहे | इससे तनाव कम होगा | आज के युग की यह आवश्यक क्रिया है।

5. नेत्रशक्ति संबंधी क्रियाएं

ये तीन प्रकार की हैं |

1) नेत्रों को शांति प्रदान करने वाली क्रियाएँ
2) नेत्रों की शक्ति बढ़ाने वाली क्रियाएँ
3) नेत्रों की चंचलता कम करने वाली त्राटक क्रियाएँ।

नेत्रों से संबंधित क्रियाएँ करते समय सिर न हिलाएँ। सिर्फ नेत्रों की पुतलियाँ घुमाएँ । इन क्रियाओं में मन का लीन होना आवश्यक है |

मुड़ी बांध कर अंगूठों को खड़ा करके उन्हें गौर से देखते रहने की ये क्रियाएँ हैं। इन सभी क्रियाओं में सांस सामान्य रहेगी। इन क्रियाओं को करते समय ध्यान दें कि सूर्य रश्मि या बिजली की बत्ती की रोशनी सीधे नेत्रों पर न पड़े।

1) नेत्रों को शांति प्रदान करने वाली क्रियाएँ

इन क्रियाओं में आँख की पुतलियाँ तेज़ी से घुमायी जाती हैं।

अ. दोनों हाथ सामने की ओर दायें-बांयें पसारें, मुड़ी बाँध लें। दोनों अंगूठों को खड़ा करें। दोनों आँखों से बायें अंगूठे और दायें अंगूठे को जल्दी-जल्दी, बारी-बारी से गौर से देखें।

आ. दायाँ हाथ दायीं ओर ऊपर उठा कर, बायाँ हाथ बायीं ओर नीचे झुकावें। ऊपर के अंगूठे तथा नीचे के अंगूठे को जल्दी-जल्दी गौर से बारी-बारी से देखें |

इ. बायाँ हाथ बायीं ओर ऊपर उठा कर, दायाँ हाथ नीचे दायीं ओर झुकावें। दोनों अंगूठों को बारी-बारी से जल्दी-जल्दी गौर से देखें।

ई. एक अंगूठे को ऊपर, एक अंगूठे को नीचे रखें। उन्हें जल्दी-जल्दी उपर नीचे देखें |

उ. एक अंगूठा भूकुटि के सामने, नाक की नोक के पास रखें और एक अंगूठा आगे पसारें। एक के बाद एक करके दोनों को जल्दी-जल्दी गौर से देखें।

ऊ. दायाँ हाथ सीधे बगल में पसारें। दायें अंगूठे को देखते हुए हाथ को गोलाकार में बड़े सर्किल में तेज़ी से घुमावें। ध्यान रहे कि कुहनी न मुड़े।

ए. बायाँ हाथ भी बगल में पसार कर ऊ’ की भांति करें।

ऐ. पलकों को तेज़ी से झपकाते रहें।

ओ. उपर्युक्त क्रियाएँ जब समाप्त हों, तब दोनों हथेलियाँ रगड़े। थोड़ी देर में गरमी निकलेगी | तब दोनों हथेलियाँ दोनों आॉखों पर रखें।

औ. ऊँगलियों से आंखो की कोमलता पूर्वक मालिश करें।

इन क्रियाओं से आंखों को बहुत आराम मिलेगा।

2) नेत्रों की शक्ति बढ़ानेवाली क्रियाएँ

ये धीरे से की जाने वाली क्रियाएँ हैं। पलकें बंद नहीं करनी चाहिए। जब तक आँख थक न जाय तब तक हर क्रिया करते रहना चाहिए।

अ. दायाँ हाथ सीधे दायीं ओर पसारें। अंगूठे को देखते हुए हाथ को धीरे-धीरे सामने लावें। इसके बाद फिर अंगूठे को देखते हुए हाथ को यथास्थान ले जावें |

आ. बायाँ हाथ बायीं ओर पसार कर उसी प्रकार करें।

इ. दायाँ हाथ ऊपर उठावें। अंगूठा देखते हुए धीरे-धीरे बायीं ओर नीचे ले आवें। फिर यथास्थान ले जावें।

ई. बायाँ हाथ ऊपर उठाकर उसी प्रकार करें।

उ. दोनों हाथ ऊपर उठावें। दोनों अंगूठों को मिला कर उन्हें देखते हुए धीरे-धीरे दोनों हाथ नीचे उतारें। फिर दोनों अंगूठों को देखते हुए दोनों हाथ ऊपर उठावें।

ऊ. दायाँ हाथ दायीं ओर पसारते हुए अंगूठा देखते हुए धीरे-धीरे बड़े सर्किल में हाथ को गोलाकार में घुमाते रहें।

ए. बायाँ हाथ बायीं ओर पसार कर उसी प्रकार करें।

ऐ. पलकों को तेजी से झपकाते रहें।

ओ. दोनों हथेलियाँ रगड़ कर गरम होने के बाद ऑखों पर हथेलियाँ दोनों अांखों पर रखें। इसे नेत्रों को आराम मिलेगा।

औ. उँगलियों से आंखो की कोमलतापूर्वक मालिश करें।

उपर्युक्त क्रियाओं से आंखो की शक्ति बढ़ेंगी।

3) नेत्रों की चंचलता कम करनेवाली त्राटक क्रियाएँ

ये अंगूठे को लगातार गौर से देखते रहने वाली त्राटक क्रियाएँ हैं। अपनी अपनी शक्ति के अनुसार 15 सेकंड से 2 मिनट तक हर क्रियाएँ की जा सकती है। हर क्रिया के बाद आंखें मूंद कर उन्हें आराम अवश्य दें।

अ. एक हाथ सामने पसार कर उस हाथ के अंगूठे को खड़ा कर उसे गौर से लगातार देखते रहें।

आ. एक हाथ को (बीच में से) ऊपर उठावें। उस अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

इ. एक हाथ को (बीच में से) नीचे उतारें। उस अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

ई. दायाँ हाथ दायीं ओर ऊपर उठावें। अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

उ. दायाँ हाथ दायीं ओर पसारें। दायें अंगूठे को गौर से देखते रहें।

ऊ. दायाँ हाथ दायीं ओर नीचे झुकावें। अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

ए. बबायाँ हाथ बायी ओर ऊपर उठावें। बायें अंगूठे को ग़ौर से देखें।

ऐ. बायाँ हाथ बायीं ओर पसारें। अंगूठे को ग़ौर से देखें।

ओ. बायाँ हाथ बायीं ओर नीचे उतारें। अंगूठे को गौर से देखें।

औ. अंगूठे को भूकुटि के सामने, नाक के पास रखें। उसे ग़ौर से देखें।

अं. उपर्युक्त दस क्रियाएँ करने के बाद मोम की बत्ती या दीप जलावें। उसे सामने मेज पर आंखों से दो फूट दूर रखें। उसे ग़ौर से देखें। इसे ज्योति त्राटक क्रिया कहते हैं।

त्राटक क्रियाओं से अांखों को तथा मन को चंचलता कम होगी |

सूचना :
उपर्युक्त क्रियाओं से आँखें थक जायेंगी।अत: पलकों को थोड़ी देर तक जल्दी-जल्दी इापकाते रहें तो थकावट दूर होगी।

इसके बाद दोनों हथेलियों को रगड़ कर दोनों आंखों पर थोड़ी देर तक रखें। बाद उँगलियों से आंखो की हलकी मालिश भी करें। इसके बाद नेत्र शुद्धि संबंधी – दो प्यालों में शुद्ध जल भरें। दोनों आंखों पर उन्हें रखें। फिर ऑखें मूंदें और खोलें। इससे नेत्र शुद्ध हो जायेंगें। ये प्याले योग केन्द्रों में मिलते हैं।

लाभ –
उपर्युक्त नेत्र संबंधी क्रियाओं से आंखों में रक्त प्रसार नियमित होगा। फल:स्वरूप नेत्रों की शक्ति में वृद्धि होगी। नेत्रों की मलिनता दूर होगी। तिरछी आना तथा प्रारंभिक स्थिति का मोतियाबिंद आदि ठीक होंगे। आम तौर पर नेत्रदूष्टि का नंबर बढ़ता रहता है। इन क्रियाओं के अभ्यास से वह कम होगा | मन की एकाग्रता बढ़ेगी। घंटों टी.वी. देखते रहने वालों तथा कम्प्यूटर आदि का काम करने वालों की नेत्र संबंधी व्याधियों का निवारण होगा।

6. नाक तथा जबडों से संबंधित क्रियाएँ

अ. दोनों होंठ बंद कर लें । ठुड़ी धीरे धीरे दायीं तथा बायीं ओर नाक सहित मोड़ते रहें।

आ. दोनों होंठ बंद करें। नाक सहित लुड़ी को ऊपर तथा नीचे करतें रहें।

इ. होंठ बंद करें। नाक सहित मुँह तथा टुड़ी को गोलाकार में एक तरफ 5-6 बार, दूसरी तरफ 5-6 बार घुमाते रहें।

ई. मुँह में हवा भर लें। जिस तरह खाना चबाते हैं, उसी तरह मुँह में भरी हवा को चबाते रहें। साधक शक्ति के अनुसार यह क्रिया करने के बाद हवा मुँह से बाहर छोड़ दें।

लाभ –
इन क्रियाओं से नाक तथा गालों पर जमा व्यर्थ चर्बी घट जायेगी। नाक के अंदर बढ़ने वाला दुर्मास कम होगा। सांस बेरोक टोक चलेगी। खाना खाते समय जबड़ों को श्रम नहीं होगा। चेहरे का आकर्षण बढ़ेगा |

7. मुख शुद्धि क्रिया

सिर थोड़ा ऊपर उठावें। जीभ को चमचे की तरह मोड़ कर उसे बाहर निकालें, मुँह में हवा भर लें, बाद में मुँह बंद कर लें, गाल फुलावें, आँखें बंद करें सिर नीचे झुकावें। थोड़ी देर तक वैसे ही रहें। । इसके बाद सिर उठाकर नाक से हवा बाहर निकाल दें। चार-पांच बार यह क्रिया करें।

लाभ –
इससे मुँह की बदबू दूर हो जायेगी। मुँह के अंदर जो फोड़े होते हैं वे कम होंगे। मुँह साफ होगा।

8. दांतों की शक्ति बढ़ाने की क्रिया

मुँह की शुद्धि क्रिया की ही तरह दांतों की शक्ति बढ़ाने की क्रिया भी की जाती है, लेकिन इस क्रिया में सांस लेते समय दोनों अंगूठों से दोनों नथुने बंद कर लें।

इस क्रिया में गाल अधिक से अधिक फुला कर दाँतों के बीच हवा का प्रसार ज्यादा करें। चार-पाँच बार दोहराएं|

लाभ –
इससे सभी दाँतों को शक्ति मिलेगी। दाँतों का हिलना, दाँतों का दर्द, पीब या रक्त का निकलना, पयोरिया जैसी व्याधियाँ दूर होंगी। गालों पर चर्बी, झुर्रियाँ तथा फुन्सियाँ कम होगी, जिससे उनकी सुंदरता बढ़ेगी।

9. श्रवणशक्ति विकास क्रिया

श्रवणशक्ति बढ़ाने के लिए दोनों अंगूठों के सिरों से दोनों कान बंद करें। दोनों तर्जनियो से दोनों ऑखें बंद करें | दोनों मध्यम उंगलियों से दोनों नासिका रंध्र बंद करें। जीभ को चमचे की तरह मोड़ कर बाहर निकालें। उसके द्वारा हवा मुँह में भरें। शक्तिअनुसार हवा मुँह में रोक कर रखें। सिर झुका लें। थोड़ी देर बाद सिर ऊपर उठावें | नाक पर से ऊँगलियाँ हटा कर नाक के द्वारा हवा बाहर छोड़ दें। इस प्रकार चार पाँच बार करें | अंगूठों को कानों में इस तरह रखे रहें कि बाहर की कोई भी ध्वनि सुनायी न पड़े।

इस क्रिया के बाद उँगलियों से कानों की मालिश करते हुए कनपट्टी को नीचे की तरफ धीरे से खींचते रहें। कानों की किनारीयों को रगडें ।

लाभ –
श्रवण शक्ति बढ़ेगी। कानों को सुनायी पड़ने वाली अपरिचित ध्वनि कम होगी | कानों से बहता रक्त या पोब भी कम होगा |

10. गर्दन संबंधी क्रियाएँ

गर्दन प्रमुख अवयव है। गर्दन के बारे में सावधानी बरतना आवश्यक है। आज-कल शहरों में मुख्य रूप से स्पांडलाइटिस जैसी गर्दन संबंधी व्याधियां बढ़ रही हैं। ठीक तरह से न बैठने, गर्दन झुका कर लिखने, गर्दन झुका कर काम करने तथा कार्यों के दबाव आदि के कारण गर्दन संबंधी व्याधियाँ होती हैं। ऐसी व्याधियों के निवारण के लिए निम्न क्रियाएँ उपयोगी हैं। बड़ी सरलता से ये क्रियाएँ की जा सकती हैं। इन क्रियाओं को करते समय कंधे न हिलें । एक-एक क्रिया 5-6 बार करें।

रीढ़ की हड़ी और सिर को सीधा रखें।

अ. धीरे-धीरे सिर को दायीं एवं बायीं ओर घुमा कर पीछे की तरफ देखें। सिर को एक तरफ घुमाते हुए सांस बाहर छोडें| सांस लेते हुए सिर को मध्य में लावें |

आ. सांस छोड़ते हुए सिर को नीचे झुकावें। सांस लेते हुए सिर को ऊपर उठावें।

इ. साँस छोड़ते हुए सिर को दायीं ओर झुकावें। साँस लेते हुए सिर को बीच में ले आवें। इसी प्रकार बायीं ओर भी करें।

ई. दायीं हथेली से दायें गाल को दबाते हुए सिर को दायीं ओर साँस छोड़ते हुए घुमावें। साँस लेते हुए सिर को बीच में ले आवें। इसी प्रकार बायीं हथेली से बायें गाल को दबाते हुए करें।

उ. सॉस रोक कर दोनों हथेलियों से ठोड़ी को दबावें।

ऊ. सॉस रोक कर दोनों हथेलियों से दोनों गालों को दबावें |

ए. सॉस रोक कर हथेलियों से दोनों कपोलों को दबावें।

ऐ. दायीं हथेली से माथे को दबाते हुए, गोलाकार में घुमावें।

ओ. सिर को थोड़ा झुका कर दायीं ओर से उसे गोलाकार में घुमावें। इसी तरह बायीं ओर से भी घुमावें। यह क्रिया दायीं ओर से बायीं ओर और बायीं ओर से दायीं और बारी-बारी से लगातार करते रहें।

औ. सॉस रोके। दोनों हथेलियों से सिर के पीछे तथा गर्दन को दबावें।

अं. दोनों हथेलियाँ रगड़े। उनसे गर्दन एवं गले की धीरे-धीरे मालिश करें।

लाभ –
सिर झुका कर काम करने वालों के लिए ये क्रियाएं अति उपयोगी हैं। दिन भर काम करने के बाद शाम को ये क्रियाएं करें, तो गर्दन संबंधी व्याधियाँ दूर होंगी| स्पांडलाइटिस जैसी व्याधि से छुटकारा मिलेगा। गर्दन सुडौल बनेगी। गर्दन की व्यर्थ चरबी कम होगी |

11. गले की नसों के विकास की क्रियाएं

अ. मुँह बंद कर लें, लुड़ी में दायीं तथा बायीं ओर खिंचाव पैदा कर गले की नसों को फुलावें | 10 सेकंड तक उन्हें वैसे ही रोक कर रखें | बाद उन्हें ढीला करें | 5 या 6 बार यह क्रिया करें।

आ गले की नसों को फुला कर 10 से 30 सेकंड तक जल्दी-जल्दी सांस लेते रहें और छोड़ते रहें।

इ. उपर्युक्त दो क्रियाएँ करने के बाद हथेलियाँ गले पर फेरें। इससे गले की नसों को आराम मिलेगा |

लाभ –
गले की नसों को शक्ति मिलेगी। कंठस्वर स्पष्ट और मधुर बनेगा। सांस लेने और भोजन करने में सरलता होगी | गले पर की व्यर्थ चर्बी कम होगी |

12. बाहु शक्ति विकास की क्रियाएँ

निम्नलिखित हर क्रिया 15 से 60 सेकंड तक करनी चाहिए।

1) वंत्र्ध (स्कंध)

अ. सुखासन में सीधे बैठे। दोनों हथेलियाँ दोनों घुटनों पर रखें। साँस लेते हुए कंधे ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए कंधे नीचे उतारें।

आ. उँगलियों से कंधे पकड़े। कुहनियाँ सामने लावें। साँस लेते हुए कुहनियाँ ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए कुहनियाँ नीचे उतारें।

इ. दोनों हाथों की उँगलियों से दोनों कंधे पकड़ कर साँस लेते हुए दोनों कुहनियाँ बगल से ऊपर उठावें। सांस छोड़ते हुए नीचे उतारें।

ई. दोनों कुहनियाँ उठा कर उँगलियों से दोनों कंधे पकड़ें। छाती के सामने दोनों कुहनियाँ लाकर मिलावें। सांस लेते हुए कुहनियाँ ऊपर उठाकर गोलाकार में बड़े सर्किल में उन्हें घुमावें।

उ. ऊपर की क्रिया उसी प्रकार नीचे से उलटा घुमाते हुए करें।

ऊ. दोनों हाथों की ऊँगलियों से दोनों कंधे पकड़े। कुहनियाँ तेज़ी से जल्दी जल्दी ऊपर उठाते-उतारते रहें।

ए. दोनों हाथों की उँगलियों से दोनों कंधे पकड़ कर कुहनियाँ आगे पीछे जल्दी जल्दी हिलाते रहें।

ऐ. दोनो हाथों की उँगलियों से दोनों कंधों को पकड़ कर बारी बारी से एक कुहनी ऊपर-नीचे तथा एक कुहनी नीचे – ऊपर करते रहें ।

औ. दोनों घुटनों को पकड कर एक-एक कंधे को गोलाकार घुमाते रहें। उलटा भी घुमायें।

अं. दायीं हथेली से बायें कंधे तथा बायीं हथेली से दायें कंधे की मालिश करें।

लाभ –
इन क्रियाओं से कंधे और उनके जोड़ चुस्त होकर शक्तिशाली बनेंगे। बोझ उठाने की शक्ति बढ़ेगी। कंधा उठा न सकने की व्याधि (फ्रोजन षोल्डर) से छुटकारा मिलेगा।

2) कुहनियां – हाथ

अ. दोनों हाथ आगे की ओर पसारें। सांस छोड़ते हुए, उंगलियों से कंधों का स्पर्श करें। सांस लेते हुए हाथ सामने करें।

आ. दोनों हाथ बगल में पसार कर दोनों हाथों की उंगलियों से कंधों का स्पर्श करें। फिर शीघ्रता से हाथों को यथास्थान ले आवें |

इ. हाथ सीधे नीचे की ओर पसारें। कुहनियों के पास हाथ ऊपर की ओर मोड़ते हुए उंगलियों से कंधों का शीघ्रता से स्पर्श करें | फिर हाथों को नीचे ले जावे

ई. दोनों हाथ ऊपर उठावें। कुहनियों के पास मोड़कर उंगलियों से कंधों का स्पर्श करते हुए ऊपर नीचे करते रहें।

उ. हाथ सामने पसार कर दोनों अंगूठे मुट्टियों में बंद करें। कुहनियों से हाथ मोड़ते हुए मुट्टियों से कंधों का स्पर्श करें। फिर वापस ले आवें। यह क्रिया तेज़ी से फोर्स के साथ करें |

ऊ. दोनों हाथ बगल में पसार कर, दोनों अंगूठे मुड़ी में दबाते हुए, कुहनी से हाथ मोड़ते हुए, मुट्टियों से कंधों का स्पर्श करें। फिर शीघ्रता से हाथों को यथास्थान ले आवें।

ए. दोनों हाथ सीधे नीचे की ओर पसारें। अंगूठे मुड़ियों में बंद करें। कुहनियों से हाथ ऊपर की ओर मोड़ते हुए मुट्टियों से कंधों को छुएँ और मुट्टियों को तेज़ी से नीचे ले जावे |

ऐ. दोनों मुड़ियाँ ऊपर उठावें। अंगूठे मुट्टियों में बंद रहें। कुहनियों से हाथ नीचे की ओर मोड़ते हुए, मुट्टियों से कंधों को छुएँ और तेज़ी से ऊपर ले जावें।

ओ. अंगूठे मुट्टियों में बंद रखें। दोनों कुहनियाँ बगल में सटा कर रखें। फोर्स के साथ साँस लेते हुए मुड़ियों को सामने की ओर तेज़ी से फेंके और साँस छोड़ते हुए यथास्थान ले आवें।

औ. अंगूठे मुट्ठी में बंद रखे। कुहनियाँ बगल में सटा कर रखें। मुट्टियाँ पलटाते हुए आगे तेज़ी से फेकें | बाद हाथ यथास्थान ले आवें।

अं. अंगूठे अंदर की ओर मोड़ें। मुड़ी बाँध लें।

हाथ आगे करें। इसके बाद दायाँ हाथ आगे बायीं कुहनी पीछे तेजी से आगे पीछे करते रहें। कंधे भी आगे और पीछे हिलाते रहें। यह महत्वपूर्ण मंथनक्रिया है।

लाभ –
इन क्रियाओं से हाथ मज़बूत होंगे। हाथों का दर्द कम होगा। कुहनियों के जोड़ लचीले और शक्तिवान बनेंगे।

3) कलाइयाँ

अ. दोनों अंगूठे मुड़ियों में बंद करें। दोनों हाथ आगे पसारें | मात्र मुट्टियों को ऊपर नीचे 10 या 15 बार करें। इसके बाद मुट्टियों को गोलाकार में 10 या 15 बार घुमावें। फिर इसी प्रकार रिवर्स भी करें।

आ.

ई. मुड़ियाँ कस कर नीचे उतारें ‘अ’ क्रिया की तरह करें।

उ. मुड़ियाँ कस कर ऊपर उठावें और ‘अ’ क्रिया की तरह करें।

ऊ.

लाभ –
कलाइयाँ बलिष्ठ होती हैं। कलाइयों का दर्द मिट जाता है। वाहन चलाने वाले तथा कम्पुटर का काम करने वालों के लिए विशेष लाभ करता है |

4) अ. हथेलियाँ (करतल)

अ. दोनों हाथ आगे की ओर पसारें। हथेलियों की उंगलियों को मिला कर पंजा बनावें। हथेलियाँ ऊपर उठावें और नीचे उतारें। 10 या 15 बार इस तरह करें। बाद हथेलियाँ इधर-उधर 10-15 बार घुमावें ।

आ. दोनों हथेलियाँ छाती के पास ले आवें। फिर ‘अ’ की तरह करें।

इ. दोनों हथेलियाँ बगल में फैला कर ‘अ’ की तरह करें।

ई. दोनों हथेलियाँ नीचे कर ‘अ’ की तरह करें।

उ. दोनों हथेलियाँ ऊपर उठा कर `अ’ की तरह करें।

ऊ. दोनों हथेलियाँ उठा कर सिर के पीछे रखें और ‘अ’ की तरह करें।

लाभ –
इससे हथेलियों में रक्त प्रसार अच्छी तरह होता है। हथेलियाँ मज़बूत बनती हैं।

4) आ. हथेलियाँ (कर पृष्ठ)

उपर्युक्त सभी क्रियाएँ उँगलियाँ दूर-दूर रख कर करें |

लाभ –
इससे हथेली का पिछला भाग मज़बूत बनता है।

5) ऊँगलियों के जोड़

दोनों हाथ सामने पसारें | ऊँगलियों तथा हाथों को ढोला कर 15 या 20 बार हिलावें |

बाद में हाथों को छाती के पास ला कर करें। इसी तरह हाथ नीचे झुका कर, ऊपर उठा कर, सिर के पीछे गर्दन के दोनों ओर रख कर भी ऊपर की तरह करें।

लाभ –
इससे उँगलियों के जोड़ों का दर्द दूर होगा। लिखने और अन्य काम करने में उँगलियों के जोड़ थकेंगे नहीं | जोड़ों की शक्ति बढ़ेगी |

6) उँगालियाँ

दोनों हाथ सामने पसारें। उँगलियों को मोड़ कर मुड़ियाँ कसे। फिर खोलें। यह क्रिया धीरे-धीरे 10 या 15 सेकंड तक करें। इसी प्रकार तेज़ी से फोर्स के साथ भी 10-15 सेकंड तक करते रहें।

हाथों को छाती के पास रख कर करें। बगल में फैला कर, ऊपर उठा कर, नीचे झुका कर तथा सिर के पीछे गर्दन के दोनों ओर रख कर भी उपर्युक्त क्रियाएँ धीरे धीरे तथा तेजी से फोर्स के साथ करें।

लाभ –
ये क्रियाएँ धीमें से करने पर हृदय मज़बूत होगा | तेज़ी से करें तो उँगलियाँ मज़बूत होंगी। काम करने की शक्ति ऊँगलियों में बढ़ेगी।

7) ऊँगलियों के सिरे

अ. दोनों हाथों की उँगलियों के सिरों को एक दूसरे से सटा कर 10 या 15 सेकंड तक दबा कर रखें। फिर ढीला करें | ऐसा 4 या 5 बार करें |

आ. किसी वस्तु को पकड़ कर खींच रहे हों। सांस हुई वस्तु को छोड़ रहे हों |

लाभ –
इससे ऊँगलियों के स्पर्श की शक्ति बढ़ेगी | उपर्युक्त सभी क्रियाएँ करने के बाद हाथों तथा हाथों की उँगलियों को ढीला कर खूब हिलावें। इसके बाद दायें हाथ से बायें हाथ और बायें हाथ से दायें हाथ की मालिश करें। इससे हाथों तथा ऊँगलियों को आराम मिलेगा।

13. आटो एक्यूप्रेशर क्रियाएँ

अ. दोनों हाथों की ऊँगलियाँ आपस में मिला कर दबावे | 5-10 सेकंड के बाद ढोला करें। 5 या 6 बार इस प्रकार करें।

आ. ऊपर की क्रिया की तरह हाथ तथा ऊँगलियाँ मिला कर 10 या 20 बार | आगे-पीछे करें।

इ. ऊपर की क्रिया की तरह हाथ मिला कर दबावें | फिर ऊपर नीचे 10, 20 बार करें।

ई. ऊपर की क्रिया की तरह हाथ दायीं तथा बायीं ओर घुमावें।

उ. दोनों हाथों की उँगलियाँ परस्पर मिलावें। फिर दायीं तथा बायीं ओर खूब खींचे | परन्तु ध्यान रहे कि हाथ न छूटें। 5-6 बार इस प्रकार करें|

ऊ. `उ’ क्रिया की तरह ऊँगलियाँ परस्पर मिला नीचे की ओर रख कर खूब खींचातानी करें। इसी प्रकार दूसरी ओर भी करें। इस तरह दायों-बायीं तरफ 5-6 बार खींचते रहें। परन्तु उंगलियाँ मिली रहें। छूटे नहीं।

ए. दोनों हथेलियाँ मिला कर उन्हें दबावें एक बार दायीं हथेली और एक बार बायीं हथेली बारीबारी से ऊपर आवें।

लाभ –
उपर्युक्त क्रियाओं से हथेलियों में सहज रूप से स्थित एक्यूप्रेशर पाइंटों पर दबाव बढ़ेगा। उसका अच्छा प्रभाव सारे शरीर पर पड़ेगा। हथेलियाँ और ऊँगलियाँ शक्तिशाली होंगी |

14. छाती, हृदय, फेफड़ों की शक्ति बढ़ानेवाली क्रियाएँ

निम्न सूचित क्रियाएँ करते समय छाती फुलाते हुए 3 या 4 लीटर हवा अंदर लें। यथास्थिति में आते हुए उस हवा को बाहर पूरा छोड़ दें। हर एक क्रिया 5 से 10 बार करें। क्रियाएँ निम्न प्रकार हैं |

अ. अंगूठों को हथेलियों में बंद कर मुट्ठी कस लें। दोनों मुट्टियाँ नाभि के पास रखें। साँस लेते हुए दोनों मुड़ियों को बाजू से सिर के साथ ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए मुट्टियाँ नाभि के पास ले आवें।

आ. दोनों हाथ सामने की ओर पसारें। धीरे से साँस लेते हुए हाथ ऊपर उठावें। नमस्कार करते हुए सिर उठा कर हाथों को देखें | सांस छोड़ते हुए हाथों तथा सिर को यथास्थिति में ले आवें।

इ. दोनों हाथ आगे पसारें। दोनों हथेलियाँ मिलावें। साँस लेते हुए हाथ बगल में पसार कर सिर उठाते हुए ऊपर देखें| सांस छोड़ते हुए यथास्थिति में आ जावें।

ई. दोनों हथेलियों को उलटा कर उन्हें मिलावें, इ’ क्रिया की तरह करें।

उ. दोनों हाथ बगल में पसारें। सांस लेते हुए दोनों हाथ और सिर ऊपर उठाकर वे नमस्कार करें। सांस छोड़ते हुए पूर्वस्थिति में आवें।

ऊ. दोनों हाथ आगे पसार कर ऊपर से गोलाकार में उन्हें घुमावें | हाथ ऊपर उठाते समय सांस लें। ऊपर से हाथों को नीचे लाते हुए सांस छोड़ें। 8 से 10 बार ऐसा घुमावें। फिर इसी प्रकार रिवर्स करें |

ए. दोनों हाथ बगल में पसार कर सांस छोड़ते हुए दोनों हथेलियों से दोनों ओर से पीठ का स्पर्श करते रहें। एक कुहनी दूसरी कुहनी पर आवें। सांस लेते हुए जल्दी-जल्दी हाथ पसारते रहें। एक बार दायाँ हाथ ऊपर आवे और एक बार बायाँ हाथ ऊपर आवे |

ऐ. दोनों हाथ बगल में से ऊपर उठाकर सिर के ऊपर से दायों हथेली से बायीं कुहनी का, बायीं हथेली से दायीं कुहनी का स्पर्श करते रहें। सांस लेते हुए हाथ ऊपर उठावें। सांस छोड़ते हुए हाथ नीचे उतारें।

लाभ –
इन क्रियाओं से सीना चौड़ा होता है। प्राणवायु अधिक मिलने के कारण छाती, हृदय तथा फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है। थकावट दूर होती है। काम करने का उत्साह बढ़ता है। फेफड़े संबंधी टी.बी.आदि, व्याधियाँ भी रोकी जा सकेगी | आजकल हार्ट अटैक आदि व्याधियों की संख्या बढ़ रही है। लाखों रुपये आपरेशन आदि के लिए खर्च हो रहे हैं। इन सुलभ क्रियाओं से छाती संबंधी व्याधियाँ दूर होंगी।

15. उदर संबंधी क्रियाएँ

अ. सीधे बैठ कर दोनों हाथ दायें घुटने के अगल-बगल में ज़मीन पर रखें। आगे से दायें घुटने का स्पर्श करें। इसी तरह बायीं ओर भी करें | 10 या 12 बार दायीं तथा बायीं ओर बारी बारी से करते रहें | 4 | हर बाद कुछ सेकंड नीचे रुके।

आ. सीधा बैठे। दोनों हाथ दोनों घुटनों के बगल में ज़मीन पर रखें। सांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुक कर माथे से ज़मीन का स्पर्श करें। कुछ सेकंड बाद सांस लेते हुए सीधे हो जावें।

लाभ –
इनसे उदर की शुद्धि होगी | एसिडिटी,अरुचि,कब्ज तथा गैस व्याधि दूर होगे | नाभि शक्तिवान बनेगी पेट की चरबी कम होगी |

16. पीठ, कमर तथा मेरूदंड संबंधी क्रियाएँ

निम्न सूचित प्रत्येक क्रिया 10, 15 बार करें।

अ. सुखासन में सीधे बैठ कर बांये घुटने को दांये हाथ से पकड़े। बांया हाथ कमर पर रखें। सांस छोडते हुए बांयी ओर घूम कर पीछे की तरफ देखें। सांस लेते हुए शरीर को मध्य में ले आवें। इसी प्रकार दूसरी ओर भी बारी बारी से करते रहें।

आ. सीधे बैठ कर दोनों हाथ बगल में पसारें | की तरफ देखें। सांस लेते हुए शरीर को मध्य में ले आवें। इसी प्रकार बायीं तरफ भी बारी बारी से करते रहें।

इ. दोनो हाथ ऊपर उठा कर नमस्कार करें | सांस छोडते हुए धीमे से दांयीं ओर झुकें । सांस लेते हुए यथास्थित में आवें । इसी प्रकार बांयीं और भी बारी बारी से करते रहें |

ई. दोनों हाथ बगल में पसारें | बायीं ओर शरीर को झुकाते हुए, सांस छोड़ते हुए दायाँ हाथ सिर के ऊपर से लेते हुए बायाँ कान छू लें। इसी प्रकार दूसरी तरफ भी बारी बारी से करते रहें।

उ. दोनों मुड़ियाँ कस लें। उन्हें छाती के पास रखें। शरीर को दोनों और दायें-बायें जल्दी-जल्दी घुमाते हुए पीछे की ओर बार-बार देखते रहें।

लाभ –
पीठ और कमर के दर्द कम होगें। स्फूर्ति बढ़ेगी। कमर के ऊपर की व्यर्थ चर्बी कम होगी। मेरुदंड ( ) लचीला बनेगा |


उपर्युक्त सभी क्रियाओं के बाद आँखो, चहेरे, गर्दन, गले तथा हाथों की मालिश करें | पैरों को लंबा कर उनकी भी मालिश कीजिए | विश्राम के बाद जल अथवा `आरोग्यामृतम्’ पी कर आगे का अभ्यास करें |

सिर से कमर तक की सूक्ष्म योग व्यायाम क्रियाएँ करने के लिये 20 से 30 मिनट लगेंगे। हर दिन प्राप्त होने वाले 24 घंटों में से इतना अल्प समय अवश्य निकालें और उपर्युक्त सभी क्रियाएँ श्रद्धा से करते हुए स्वास्थ्य लाभ करें। यही हमारा नम्र निवेदन है।