योग निद्रा शरीर और मन को पूर्ण आराम देनेवाली पुरानी भारतीय योग क्रिया है। गत कुछ शताब्दियों से इस क्रिया पर ध्यान नहीं दिया गया। बिहार स्कूल ऑफ पुनरुद्धार किया। इससे कई साधकों ने फायदा उठाया। अब भी उठा रहे हैं।
स्वामीजी गाँधी ज्ञान मंदिर, हैदराबाद, 5 बार पधारे। यहाँ के साधकों को इस क्रिया का शिक्षण दिया। इस पर शोध कार्य कर अपने अनुभव के आधार पर हमने थोड़ा परिवर्तन किया। हम चाहते हैं कि साधक इस अद्भुत क्रिया से परिचित हों और लाभ उठावें।
विधि –
शवासन का विकसित रूप ही योगनिद्रा की क्रिया है| इस क्रिया के आरंभ में शवासन में लेट कर विचार सभी रोक कर श्वास पर मन को केन्द्रित करें। शरीर के छोटे-बड़े अंग-प्रत्यंग को मन से देखें और मन से अनुभव करें। बाद अंग प्रत्यंग ढोला कर दें। उन्हें ढीला करते समय सचेत रहें और एक-एक अवयव को लेकर निम्न क्रम से उन पर यह क्रिया करें।
दायाँ हाथ –
अँगूठा, तर्जनी, मध्यम उँगली, तीसरी उँगली, छोटी उँगली, हथेली का पिछला भाग, हथेली, कलाई, हाथ का अग्रभाग, कुहनी, कुहनी का ऊपरी भाग एवं कंधा |
दायाँ पैर –
अंगूठा, दूसरी, तीसरी, चौथी और पाँचवीं ऊँगलियाँ, पंजा, तलुवा, एड़ी, टखना, पिंडली, घुटना, जांघ एवं जांघ का जोड़।
बायाँ पैर –
दायें पैर की तरह
बायाँ हाथ –
दायें हाथ की तरह |
पीठ –
रीढ़ की हड़ी नीचे से ऊपर तक, पीठ का दायीं ओर का हिस्सा, दायें कंधे के पीछे का भाग, पीठ का बायाँ हिस्सा, बायें कंधे के पीछे का भाग, गर्दन के पीछे का भाग |
पेट, छाती और गला –
नाभि, नाभि की बायीं ओर, नाभि के नीचे (मूत्रेद्रिय सहित), नाभि की दायीं ओर, नाभि का ऊपरी भाग, छाती का मध्य भाग, दायां स्तन, बायां स्तन, गले के नीचे का गढ़ा, गला |
सिर –
ठोढ़ी, नीचे का होंठ, जीभ, ऊपरी होंठ, दायाँ नथुना, दायाँ गाल, दायाँ भूकुटि, माथा, सिर का ऊपरी भाग, सिर के पीछे का भाग।
उपर्युक्त क्रम में मन को हर अवयव पर 10-20 सेकंड केन्द्रित करें। खुली ऑखों से जैसे देखते हैं, उसी प्रकार बंद अॉखों से भी उनके आकार और रूप को देखते हुए उन्हें ढीला करते रहें।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ 10-15 मिनटों में हो जाएगीं। यह एक चक्र या रौड है। ऐसे रौड एक या एक से बढ़ कर भी करें।
यह क्रिया रात के समय बिस्तर पर लेट कर करें तो लाभ होगा। इससे अच्छी नींद आयेगी | शरीर और मन को आराम मिलेगा | नींद का समय भी घटेगा |
यह क्रिया करते समय निम्नलिखित अनुभव हो सकते हैं :
1) शरीर भारी या हलका लगने लगेगा।
2) शरीर के किसी भाग पर मानों जलते कोयले की गर्मी या बरफ के टुकड़े की शीतलता का अनुभव होगा।
3) लगेगा कि चर्म पर कोई कीड़ा चढ़ रहा हो या किसी ने डंक मार दिया हो या कोई पकड़ कर खींच रहा हो।
4) शरीर आसमान में उड़ रहा हो या समुद्र के विशाल जल में तैर रहा हो या जमीन में धंस रहा हो |
5) जीभ को कोई स्वाद लग रहा है। कान को कोई ध्वनि सुनायी पड़ रही है। नाक में गंध लग रही है। ऑख के समक्ष कोई प्रकाश दिखाई देरहा है।
6) शरीर को गरम हवा लग रही है या ठंडी हवा लग रही है।
7) सांस सामान्य होने पर भी लगेगा कि तेज़ चल रही है या रुक-रुक कर चल रही है।
ऐसी और कुछ क्षणिक अनुभूतियाँ साधकों को हो सकती हैं। परन्तु विचलित न हों | क्रिया से ध्यान न हटे |
लाभ
1) हर मनुष्य रोज कई लोगों को देखता रहता है| इसी तरह योगनिद्रा में हर व्यक्ति अपने आप से मिलता है| शरीर के हर अवयव से उसका परिचय होता है।
2) योगनिद्रा से नींद अच्छी आएगी | इससे ज्ञान बढ़ेगा। तंद्रा के लिए मौका नहीं मिलेगा | समय व्यर्थ नहीं जायेगा |
3) थकावट दूर होगी। नींद का समय कम होगा। फिर भी अवयव सब चुस्त रहेंगे।
4) टेन्शन, अधिक रक्त चाप, दिल की धड़कन तथा छाती दर्द कम होंगे।
5) मानसिक और शारीरिक रूप से मनुष्य को शांति एवं स्थिरता प्राप्त होगी।चंचलता कम होगी |
योगनिद्रा सूक्ष्म क्रिया है। इसमें मन का लीन होना अत्यंत आवश्यक है। विशेषज्ञ की निगरानी में आरंभ करें या कुछ दिन हमारा सी.डी. कैसेट मंगा कर उसे सुनते हुए करें। बाद स्वयं नियमित करते हुए पूर्ण लाभ उठावें |