29. योग चिक्रित्सा


आज विश्व के वैज्ञानिकों के साथ साथ सभी विशेषज्ञों ने यह स्वीकार किया है कि योगाभ्यास के द्वारा कई रोगों की चिकित्सा सफलता के साथ की जा सकती है। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया है कि यद्यपि योग चिकित्सा में समय ज्यादा लगता है, मगर रोग स्थाई रूप से दूर हो जाते हैं। इसलिए वैज्ञानिक दृष्टि से विश्व के कई विकसित देशों में भी आज योग विद्या का बहुत बड़ा आदर हो रहा है|

साधक या रोगी योग शास्त्र के विशेषज्ञ द्वारा यह जान लें कि किन-किन रोगों के लिए कौन से योगासन, क्रियाएँ करना उचित है। फिर उनकी सलाह के अनुसार रोज योगाभ्यास करते रहें तो अद्भुत सफलता पा सकते हैं। योगाभ्यास करते हुए तरह-तरह के रोगों को दूर कर सकते हैं। साथ हमारे दिव्य आयुर्वेदिक औषधियों के उपयोग से काफी लाभ हो सकता है।

समाचार पत्रों से भी यह ज्ञात हो रहा है कि अद्भुत प्रतिभा, अपार अनुभव तथा अलौकिक शक्तियों के सहारे योगविशेषज्ञ कई पुराने जटिल रोगों को दूर कर रहे हैं।

अब हम जान लें कि किन-किन रोगों को दूर करने में किन किन यौगिक क्रियाओ तथा दिव्य औषधों का महत्वपूर्ण उपयोग है।

साथ में, सूक्ष्म योग (अध्याय 7) तथा स्थूल योग (अध्याय 16) में उल्लिखित, शरीर के व्याधिग्रस्त अंगों से संबंधित क्रियाओं का अभ्यास अवश्य करें। प्राणायाम का विवरण अध्याय 18 में पढ़ें |

सरदी, खांसी, अस्थमा, एलर्जी, श्वास संबंधित रोग

योगासन –(1) पश्चिमोत्तानासन, (2) सर्वागासन, (3) हलासन, (4) चक्रासन, (5) मत्स्यासन, (6) भुजंगासन, (7) उष्ट्रासन, (8) सिंहासन, (9) सूर्यनमस्कार,(10) सुप्त वज्रासन
प्राणायाम – भस्त्रिका, सूर्य भेदी, उज्जाई, नाडी शोधन
शुद्धि क्रियाएँ – धौति,नेति,कपाल भाति,वस्ति या एनिमा शंख प्रक्षालन प्राकृतिक चिकित्सा – भाप स्नान
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, श्वासनामृतम्
निषेध – श्लेष्म बढ़ानेवाले अतिशीतल खाद्य या पेय पदार्थ नहीं खाना चाहिए और नहीं पीना चाहिए। रात्रि भोजन जल्दी करे।

कब्ज, अजीर्ण, गैस, एसिडिटी तथा उदर एवं जीर्ण कोश से संबंधित रोग

योगासन –(1) पवन मुक्तासन, (2) पश्चिमोत्तानासन, (3) वज्रासन, (4) अर्धमत्स्येंद्रासन, (5) योगमुद्रा, (6) हलासन, (7) भुजंगासन, (8) शलभासन, (9) धनुरासन, (10) मयूरासन, (11) उत्तानपादासन
प्राणायाम – भस्त्रिका, सूर्य भेदी
शुद्धि क्रियाएँ – जल धौति, वस्त्रधौति, वस्ति या एनिमा, शंख प्रक्षालन
प्राकृतिक चिकित्सा – मिट्टी की पट्टी, कटि स्नान, चुंबक जल
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम् उदरामृतम्
निषेध – उदर में वायु भरनेवाले पदार्थ खाना नहीं चाहिए। आलू अरबी तथा कंद या सूरन न खाएँ | चने की दाल तथा इससे संबंधित पदार्थ, मंसाहार त्याग देना चाहिए | सप्ताह में एक समय का भोजन त्यागें |

मोटापा व स्थूलकाय

योगासन – (1) सूर्य नमस्कार, (2) पवन मुक्तासन, (3) पश्चिमोत्तानासन, (4) अर्धमत्स्येद्वासन, (5) योगमुद्रा, (6) सर्वागासन, (7) हलासन, (8) चक्रासन, (9) भुजंगासन, (10) धनुरासन, (11) पादहस्तासन
प्राकृतिक चिकित्सा – मसाज, भाप-स्नान, उपवास
प्राणायाम – भस्त्रिका, सूर्य भेदी, नाडी शोधन, कपाल भाति
शुद्धि क्रियाएँ – जलधौति, नौलि, शंख प्रक्षालन दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, सौदर्यामृतम्
निषेध – मलाई जैसी चरबी बढ़ानेवाली चीजें त्याज्य हैं। मांसाहार त्याग देना चाहिए। रात में देर से भोजन नही करना चाहिए |

मधुमेह तथा प्रमेह

योगासन – (1) पवन मुक्तासन, (2) सुप्त मत्स्येंद्रासन (3) अर्धमत्स्येंद्रासन, (4) योग मुद्रा, (5) गोमुखासन, (6) कूमसिन (7) वक्रासन, (8) सर्वागासन, (9) हलासन, (10) भुजंगासन, (11) शलभासन, (12) धनुरासन, (13) मयूरासन, (14) वज्रासन, (15) शशांकासन, (16) सुप्त वज्रासन, (17) सूर्यनमस्कार
प्राणायाम – सूर्य भेदी, उज्जाई, भस्त्रिका, नाडी शोधन
शुद्धि क्रियाएँ – वस्त्र धौती, वस्ति या एनिमा, शंख प्रक्षालन
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, मनसामृतम्
निषेध – भारी तथा मीठे पदार्थ नहीं खाना चाहिए। चावल भी त्यागना आवश्यक है| खाएं तो बहुत कम खाना चाहिए।

रक्तचाप, नींद की कमी, टेन्शन और मानसिक दबाव

योगासन – (1) शवासन, (2) पद्मासन, (3) बद्ध पद्मासन (4) सुखासन, (5) अन्नदासन
प्राणायाम – चंद्रभेदी, शीतली, शीतकारी, भ्रमरी
शुद्धि क्रियाएँ – वस्ति या एनिमा, जलनेति, सूत्रनेति, कपालभाति ध्यान – बेटर हेल्थ मेडिटेशन, योगनिद्रा और सूक्ष्मयोग क्रियाएँ
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, मनसामृतम् निषेध – नमक, मांसाहार, मसालों का उपयोग कम करना चाहिए।

जोडों के दर्द

योगासन – (1) पवन मुक्तासन, (2) सुखासन, (3) पद्मासन, (4) योगमुद्रा, (5) मत्स्यासन, (6) वज्रासन, (7) गोमुखासन, (8) भुजंगासन, (9) शलभासन, (10) धनुरासन, (11) मेरुदंडासन |
प्राणायाम – सूर्यभेदी, नाडीशोधन (सरल)
शुद्धि क्रियाएँ – वस्ति या एनिमा, शंख प्रक्षालन प्राकृतिक चिकित्सा – तेल मालिश, भाप स्नान दिव्य औषध – आरोग्यामृतम् . अमृत तैलम्
निषेध – नमक, मासाहार, चना, चने की दाल से बने पदार्थ त्याग देना चाहिए | घुटनों के दर्द वाले पद्मासन, वज्रासन न करें |

कमर दर्द

योगासन – (1) पवन मुक्तासन, (2) पश्चिमोतानासन, (3) सेतु बंधासन, (4) योग मुद्रा, (5) हलासन, (6) भुजंगासन, (7) मेरू दंडासन, (8) मार्जारासन, (9) शवासन और, (10) खड़े होकर की जानेवाली स्थूल योग व्यायाम सरल क्रियाएँ।
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, अमृततैलम, मनसामृतम, च्यवनप्राश
प्राकृतिक चिकित्सा – तेल मालिश, भाप स्नान
निषेध – बोझ उठाना नहीं चाहिए। ज्यादा देर तक एक ही स्थिति में नहीं बैठना चाहिए। स्कूटर पर ज्यादा घूमना नहीं चाहिए। घूमें तो बीच-बीच में रुक कर आराम लेना आवश्यक है। कमर से आगे न झुकें।

घुटनों का दर्द

योगासन – (1) पवन मुक्तासन, (2) कर्ण पीडासन, (3) धनुरासन, (4) गरुडासन, (5) मेरुदंडासन, (6) पक्षीक्रिया, (7) खड़े होकर की जाने वाली स्थूल योग व्यायाम क्रियाएँ
प्राकृतिक चिकित्सा – तेल मालिश, भाप स्नान
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, अमृत तैलम्, सौंदर्यामृतम् (स्थूल व्यक्त्तियो के लिए)
निषेध – शरीर का वजन बढ़ना नहीं चाहिए। नमक कम करें |

स्पांडिलाइटिस और गरदन दर्द

योगासन –(1) भुजंगासन, (2) निरालंबासन, (3) मत्स्यासन, (4) सुप्त वज्रासन, (5) पूर्वोत्तानासन, (6) शवासन
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, अमृततैलम्
निषेध – ज्यादा देर तक गर्दन झुका कर काम नहीं करना चाहिए। स्कूटर धीरे से चलाना चाहिए|

गले की तकलीफे

योगासन – (1) शशाकासन, (2) सुप्त वज्रासन, (3) जानु शिरासन, (4) सर्वागासन, (5) हलासन, (6) मत्स्यासन, (7) भुजंगासन, (8) सिंहासन
प्राणायाम – शीतली, शीतकारी, भ्रमरी शुद्धिक्रिया – जलधौति, सूत्रनेति, कपाल भाति
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, (कुल्ला भी करें)
निषेध – आईस्क्रीम तथा तेल से बने पदार्थ त्याज्य हैं।

कोढ़ एवं त्वचा (चर्म) संबंधी रोगों

योगासन –(1) सर्वागासन, (2) शीषसिन, (3) मत्स्यासन प्राणायाम – सभी प्राणायाम
शुद्धि क्रियाएँ – वस्त्र धौती, शंख प्रक्षालन
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्
निषेध – मांसाहार, मछलियाँ अंडे तथा तेल से बने पदार्थ त्याज्य हैं |

हर्निया तथा अॉतो की तकलीफें

योगासन – (1) पूर्वोत्तानासन, (2) हलासन, (3) शीर्षासन, (4) नौकासन, (5) पादोत्तानासन, (6) गरुडासन
प्राणायाम – नाडी शोधन
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम् , उदरामृतम्
निषेध – उष्ट्रासन, भुजंगासन, धनुरासन नहीं करना चाहिए।

पक्षवात (लकवा)

योगासन – (1) वज्रासन, (2) योगमुद्रा, (3) धनुरासन, (4) पश्चिमोत्तानासन, (5) चक्रासन,(6) पवनमुक्तासन
प्राणायाम – सभी प्राणायाम
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, मनसामृतम, अमृत तैलम्
प्राकृतिक चिकित्सा – तेल मालिश

गर्भाशय एवं जननेंद्रिय संबंधी रोग

योगासन –(1) सूर्य नमस्कार, (2) पवन मुक्तासन, (3) पश्चिमोत्तानासन, (4) पद्मासन, (5) योगमुद्रा, (6) मत्स्यासन, (7) वज्रासन, (8) अर्ध मत्स्येंद्रासन, (9) सर्वागासन, (10) हलासन, (11) चक्रासन, (12) भुजंगासन, (13) शलभासन, (14) धनुरासन, (15) सिद्धासन, (16) भद्रासन, (17) गोरक्षासन, (18) वातायनासन
शुद्धि क्रियाएँ – वस्ति या एनिमा, अग्निसार क्रिया, शंख प्रक्षालन
प्राकृतिक चिकित्सा – एनिमा, मालिश, गीली पट्टी
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, मनसामृतम, च्यवनप्राशावलेह
निषेध – मसाले, अंडे, मांस, मछली त्याज्य हैं| रात में देर से भोजन करना मना है।

गुदा से संबंधित पाईल्स, फिस्टुला, फिशर आदि रोग

योगासन – (1) सर्वागासन, (2) हलासन, (3) भुजंगासन, (4) धनुरासन
प्राणायाम – शीतली, शीतकारी, चन्द्रभेदी
प्राकृतिक चिकित्सा – गोमूत्र से एनिमा
निषेध – मिर्च मसाले, मांसाहार त्याज्य हैं।
शुद्धि क्रियाएँ – मूलबंध, शंख प्रक्षालन
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम् , उदरामृतम्

हृदय से संबंधित रोग

योगासन –(1) वज्रासन, (2) जानुशिरासन, (3) पाद हस्तासन, (4) बद्ध पद्मासन, (5) शवासन |
प्राणायाम – (1) सरल, (2) चंद्रभेदी, (3) उज्जायी, (4) भ्रामरी
ध्यान – योग निद्रा और ध्यान |
निषेध – भारी भोजन, मांसाहार, चरबी बढ़ानेवाले पदार्थ त्याज्य हैं। बोझ उठाना नहीं चाहिए। टेन्शन कम करना है।
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, मनसामृतम्। *

सिगरेट, तंबाकू, गुटखा, शराब, ड्रग्स आदि के व्यसन

योगासन – शक्ति के अनुसार सभी योगासन
प्राणायाम – सभी प्रकार के प्राणायाम
शुद्धि क्रियाएँ – कुशल मार्गदर्शन में सभी षट्रक्रियाएँ
दिव्य औषध – आरोग्यामृतम्, मनसामृतम. च्यवनप्राशावलेह
निषेध – अभ्यास में निराशा, उदासी, चंचलता को न आने दें |
सूचना – परिवार के सदस्यों तथा मित्रों के प्रोत्साहन और सहयोग से संपूर्ण व्यसन मुक्ति संभव है |

पूर्व वेन अध्यायों में हमने विवरण वे साथ उन सभी योग क्रियाओं वेन लाभों वेल बारे में लिखा। इस अध्याय में उल्लिखित क्रियाआों वेत द्वारा रोगों को दूर करने का निरंतर प्रयास साधकों को करते रहना चाहिए।


समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः ।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ||
– सुश्रुक्त संहिता सूत्र 15/48

जिसवेल शरीर में दोष (वात-पित्त-कफ), अग्नि (जठराग्निं), सप्तधातु (रस-रक्त-मांस-मेद- अस्थि-मज्जाशुक्र) समान हों एवं मल (मल-मूत्र-पसीना आदि) विसर्जन की क्रियाएं ठीक होती हो I और इन सबवेल साथ जिसकी आत्मा, इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न हों, ऐसे मनुष्य

को स्वस्थ कहते हैं |