12. पीठ के बल लेट कर किये जानेवाले योगासन (20-30 मिनटों का कार्यक्रम)

पीठ के बल लेट कर किये जानेवाले योगासन सभी अवस्थावालों के लिए प्रयोजनमूलक हैं।

1. शवासन या शत्यासन

इस स्थिति में शरीर शव जैसा निश्चल रहता है। इसलिए यह शवासन कहलाता है| मन की शांति प्राप्त होती है |

विधि –
पीठ के बल लेट कर सभी अवयव होला कर दें। दोनों हथेलियाँ जांघों से थोड़ी दूर आसमान की ओर रखें। पैर पसार कर एड़ियाँ दूर-दूर रखें। यही शवासन या शांत्यासन है। आांखे बंद रहे।

श्वास प्रश्वास सामान्य रूप से चलें। नन्हें शिशु के श्वास प्रश्वासों की तरह उदर की स्थिति रहे। अर्थात् श्वास लेने पर उदर फूले, श्वास छोड़ने पर पेट सहज रूप से पिचक कर अंदर चला जाये |

दायीं ओर तथा बायीं ओर लेट कर भी शवासन कर सकते हैं।

दायाँ हाथ सिर के नीचे रख कर दायीं ओर करवट लें। बायाँ हाथ शरीर पर रख कर यह आसन करें।

इसी प्रकार बायाँ हाथ सिर के नीचे रखें | बायीं ओर पलट कर दायाँ हाथ शरीर पर रख कर भी यह आसन करें। शारीरिक एवं मानसिक रूप से सभी अवयव ध्यान लगा कर बिल्कुल ढीला कर दें।

लाभ –
इस आसन से सभी अवयवों को आराम मिलेगा। थकावट दूर होगी। टेन्शन दूर होगा। रक्तचाप नियमित हो जायगा । अवयवों को शांति एवं स्फूर्ति मिलेगी।


2. सुप्त पवन-मुक्तासन

पवन का अर्थ है हवा। पेट में जमी वायु याने अपान वायु से मुक्ति पवन – मुक्तासन दिलाता है। इससे शरीर के अंदर जमी अपानवायु मुँह तथा मल रंध्र से बाहर निकल जाती है| यह आसन सवेरे जागते ही बिस्तर पर ही करना चाहिए। रात में जो खाना खाते हैं उसके पाचन के समय पैदा होनेवाली गैस पेट में रह जाती है। यह आसन उस गैस को निकाल बाहर कर देता है| किसी भी समय खाली पेट यह आसन किया जा सकता है|

विधि –
सीधे लेट कर दायाँ घुटना मोड़ कर पकड़ें। जांघ को पेट से लगावें। सिर उठा कर सांस छोड़ते हुए घुटने से ठोढ़ी का स्पर्श करने का प्रयास करें। बाद में सांस लेते हुए पैर पसारें। इसी प्रकार बायाँ घुटना भी मोड़ कर आसन करें।

इसके बाद दोनों घुटने ऊपर उठा कर मोड़े। उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर दबावें। सिर उठा कर सांस छोड़ते हुए ठोढ़ी या माथे से घुटनों को छूने का प्रयास करें। 5-10 बार आगे पीछे झूलें।

इसके बाद दायीं ओर तथा बायीं ओर भी पलटते हुए 5-10 बार झूलें। यह एक रौड है। ऐसे राउंड दो तीन बार करें। पेट में ध्यान लगावें ।

लाभ –
पवन-मुक्तासन से अपानवायु बाहर निकल जाती है। कब्ज के दूर होने से उदर साफ होता है। चरबी के घटने के कारण शरीर की स्थूलता कम होती है। रीढ़ की हड़ी मज़बूत होती है। फेफड़े अच्छी तरह काम करते हैं। घुटनों का दर्द कम होता है|

निषेध –
गर्भिणी स्त्रियाँ यह आसन न करें।


3. तानासन

इस स्थिति में शरीर को तान कर खींचा जाता है। इसलिए यह तानासन कहलाता है। जब पालतू जानवर जागते हैं, तब वे थकावट दूर करने के लिए शरीर को खींच कर अंगड़ाई लेते हैं। आदमी भी आलस्य दूर करने वे लिए अंगड़ाई लेते हैं। इस तरह सवेरे अंगड़ाई लेने से रात का आलस्य दूर हो जाता है।

विधि –
पीठ के बल लेटें। हाथ पैर सीधे पसार कर खींचें। इस स्थिति में 10 से 20 सेकंड रहें। बाद शरीर को होला कर दें | 4 या 5 बार यह क्रिया करें | सांस सामान्य रहे | शरीर के खींचाव पर ध्यान दे |

लाभ –
इस आसन से शरीर की सभी नाड़ियाँ खिचती हैं। इससे हर नस व नाड़ी में शक्ति भरती है। आलस्य दूर होता है। थकावट दूर हो जाती है।


4. अनंतासन या कृष्णासन

यह आसन भगवान कृष्ण को प्रिय था | इस मे आत्मा की अनंत स्थिति का अनुभव करना है |

विधि –
1. शवासन की तरह दायीं ओर पलट कर, दायों हथेली पर ། सिर रखें | बायें हाथ से बायें पैर की पिंडली पकड़ कर उसे ऊपर उठावें । पैर के पंजे को 8-10 बार उठाते झुकाते रहें। बायीं पिंडली पर ध्यान दें |

2. उपर्युक्त स्थिति में बायाँ हाथ घुटने के नीचे लगा कर, बायें पैर तथा पिंडली को नीचे-ऊपर करते रहें। बायें घुटने पर ध्यान लगावें ।

3. बायाँ हाथ छाती के पास ज़मीन से लगावें | बायें पैर को जांघ सहित नीचे-ऊपर 8-10 बार झुकाएं और उठावें | बायी जांघ पर ध्यान दें |

4. इसी प्रकार बायीं और पलट कर भी उपर्युक्त क्रियाएँ 8-10 बार करें।

श्वास-प्रश्वास सामान्य रहे |

लाभ –
पैर, पिंडलियाँ, घुटने, जाँघ, जाँघों के जोड़ तथा कमर मज़बूत होते हैं।


5. बालासन (शिशुआसन)

बाल शिशु के द्वारा सहज ही किया जानेवाला आसन बालासन कहलाता है। कोई भी यंत्र ज्यादा दिनों तक पड़ा रहे तो उसे जंग लग जाता है | इसी तरह हमारे शरीर के अवयव भी बिना हिले डुले रहें तो मंद पड़ जाते हैं। बालासन करने से अवयवों में संचलन आ जाता है|

विधि –
पीठ के बल लेटें। हाथों और पैरों को साइकिल के पैडल की तरह हिलाते रहें। एक मिनट तक यह क्रिया कर फिर रिवर्स भी करें। श्वास-प्रश्वास सामान्य रहें। अभ्यास के बाद सिर भी दायीं-बायीं ओर घुमाते रहें। सारे शरीर पर ध्यान दें |

लाभ –
किसी की मदद के बिना शिशु अपने आप अवयवों को हिला-हिला कर यह आसन कर, अपने अवयवों में स्वयं रक्त संचार करता है| इसी प्रकार साधक इस आसन के द्वारा अपने अवयवों में रक्त संचार कर सकते हैं|


6. उत्तान पादासन या पादोक्तानासन

पाँव ऊपर उठा कर यह आसन किया जाता है| इसलिए यह उत्तान पादासन या पादोतानासन कहलाता है।

विधि –
पीठ के बल लेट कर हाथ पैर सीधे पसारें | हथेलियाँ ज़मीन पर रखें। गर्दन एवं सिर को ज़मीन पर टिकावें । सांस ले कर कुंभक करते हुए दायाँ पैर एक फुट ऊपर उठा कर पंजे को नीचे ऊपर करें। सांस छोड़ते हुए दायाँ पैर नीचे लावें |

इसी तरह बायें पैर से भी करें।

इसके बाद दोनों पैर एक साथ ऊपर उठा कर भी करें | यह एक रौड है। इस तरह 2 या 3 राउंड करें। इस आसन में पैरों को आहिस्ते आहिस्ते ऊपर उठावें और नीचे उतारें | पिंडलियों पर ध्यान दें |

लाभ –
इस आसन से गैस और हर्निया कम होंगे | पेट के अंदर की चर्बी कम होगी। भूख बढ़ेगी। उदर से संबंधित कई रोग दूर होंगे। कमर दर्द कम होगा। रक्त प्रसार सही ढंग से होगा। इससे हृदय को बल मिलेगा। नाभि को अपनी जगह स्थिर रखने में यह आसन सहायक होगा |


7. पादचलनासन

इस आसन में पैर घुमाये जाते हैं। इसलिए यह पादचलनासन कहलाता है।

विधि-
पादो तानासन की तरह दायाँ पैर ऊपर उठा तथा चरण सहित गोलाकार में 5 या 6 बार धीरे-धीरे घुमावें | बाद रिवस भी करें।

बायाँ पैर भी वैसे ही घुमावें। इसके बाद दोनों पैर मिला कर ऊपर की तरह घुमावें। श्वास सामान्य रहे। जाँघों के जोड़ों पर ध्यान दें |

लाभ –
पादोतानासन से जो लाभ होते हैं, वे सब पादचलनासन से भी होंगे। जांघों के जोड़ों को अधिक शक्ति मिलेगी।


8. नौकासन

इस आसन में शरीर नाव की भांति रहता है। अत: यह नौकासन कहलाता है।

विधि –
1. पीठ के बल लेटें। हाथ पैर सीधे लंबा पसारें। नमस्कार करते हुए सांस लेते हुए दोनों हाथ रीढ़ की हड़ी सहित ऊपर उठावें। बाद दोनों पैर भी ऊपर उठावें। सांस छोड़ते हुए नीचे आ जायें।

2. दोनों हथेलियाँ जाँघों पर रख कर उपर्युक्त क्रिया करें।

3. दोनों हाथ बगल में पसारें | दोनों पैर दूर-दूर रखें। दोनों हाथ, सिर तथा दोनों पैर सांस लेते हुए एक फुट ऊपर उठावें। सांस छोड़ते हुए पैर नीचे उतारें | पेट-नाभि पर ध्यान लगावें |

लाभ –
यह नौकासन नाभि की बड़ी मदद करता है। मल विसर्जन आसानी से होता है| गैस कम होती है| कमर दर्द, हर्निया और उदर संबंधी व्याधियाँ दूर होती हैं।


9. सुप्त-मत्स्येंद्रासन

मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर यह आसन मत्स्येन्द्रासन कहलाता है| यह आसन बैठ कर किया जाता है| साथ ही साथ यह आसन पीठ के बल लेट कर भी सरल ढंग से किया जाता है।

विधि –
पीठ के बल लेट कर हाथ पसार कर पैरों को पास-पास रखें | दायाँ पैर उठा कर बायें घुटने के पार ज़मीन पर रखें। बायाँ हाथ उठा कर दायें घुटने को पकड़ें। बायाँ घुटना नीचे ही मोड़ कर बायें पैर के अंगूठे को दायें हाथ से पकड़े।

ओर घुमावें। सांस लेते हुए दायां घुटना ऊपर उठावें | यह क्रिया 5-6 बार करें।

इसी प्रकार हाथ पैर बदल कर दूसरी ओर भी करें।

कमर या पेट पर ध्यान केंद्रित रखें |

लाभ –
लिवर, स्लीन, मूत्रपिड, पेंक्रियास तथा शुक्राशय को शक्ति मिलती है। पेट तथा अन्य भागों की व्यर्थ चरबी घटती है। घुटनों के दर्द, गर्दन संबंधी दर्द तथा मधुमेह के निवारण में यह आसन बड़ा सहयोग देता है।


10. सुप्त-मेरुदंडासन (अनेक आसनों का संपुष्ट)

मेरुदंड याने रीढ़ की हड़ी है। यह मेरुदंड से संबंधित आसन है। अत: यह मेरुदंडासन कहलाता है| पीठ के बल लेट कर और यदि लेट न सकें तो बैठ कर यह आसन हर दिन करें। एक दिन लेट कर और एक दिन बैठ कर भी यह आसन कर सकते हैं।

इस आसन की क्रियाएं शक्ति के अनुसार 5 से 10 बार करें।

हर क्रिया के समय शरीर को बगल में घुमाते हुए सांस छोड़े। बाद सांस लेते हुए मध्य स्थिति में आवें। निम्न लिखित क्रियाएं एक के बाद एक करते हुए रीढ़ की हड़ी तथा कमर पर मन को केन्द्रित करें।

विधि –
1. दोनों हाथ दोनों बगलों में पसारें। पैर दोनों अगल-बगल में रख कर पीठ के बल लेटे। दायां हाथ उठा कर बायीं और लावें | बायीं हथेली पर दायें हाथ की हथेली रख कर नमस्कार करें। बाद में दायाँ हाथ दायीं ओर ले आवें। इसी प्रकार बायें हाथ से भी करें। रीढ़ की हड़ी इधर-उधर दोनों ओर मोडें |

2. दोनों हाथ दोनों बगलों में पसारें। दोनों एड़ियाँ मिलावें | हाथ और कंधे उठाये बिना, पेट और शरीर का मध्य भाग दायीं ओर पलटावें । सिर को बायीं तरफ पलटा कर देखें । बाद मध्य स्थिति में आवें। फिर दूसरी ओर भी इसी प्रकार करें।

3. (अ) दोनों हाथ दोनों बगलों में पसारें। दायाँ पांव बायें पाँव पर क्रास कर पलटा कर यह क्रिया करें |

(आ) बायाँ पाँव दायें पाँव पर क्रास कर रखें और ऊपर की तरह करें।

4. (अ) दोनों हाथ दोनों ओर पसारें। दायें पाँव की एड़ी बायें पाँव की उँगलियों पर रखें। ऊपर के अनुसार दोनों ओर पलटाते हुए यह क्रिया करें।

(आ) बायें पाँव की एड़ी दायें पाँव की ऊँगलियों पर रख कर ऊपर की तरह करें।

5. (अ) दोनों हाथ दोनों ओर पसारें। दायें पैर का तलुआ बायें घुटने पर रखें। दायाँ घुटना बायीं ओर झुका कर ज़मीन को छुएँ। दायीं ओर देखें। इसी तरह दायाँ घुटना दायीं ओर भी झुका कर ज़मीन से लगावें। बायीं ओर देखें।

(आ) बायाँ तलुआ दायें घुटने पर रख कर ऊपर (अ) की तरह दोनों ओर करें।

6. (अ) दोनों हाथ दोनों ओर पसारें। दोनों घुटने मोड़ कर दोनों एड़ियों से नितंबों का स्पर्श करें। बाद दोनों घुटने और दोनों एड़ियाँ मिला कर रखें। दोनों घुटने दायीं ओर झुकाते हुए ज़मीन से लगावें। बायीं ओर देखें। मध्य स्थिति में आकर, उसी प्रकार बायीं ओर घुटने झुकावें। दायीं ओर देखें।

(आ) दोनों घुटने उठावें। जांघों को मिला कर पेट से लगावें। ऊपर की तरह इधर-उधर दोनों ओर यह क्रिया करें।

(इ) दोनो हाथ दोनों ओर पसारें | दोनो एड़ियां नितंबों के समीप रखें । दायां घुटना दायीं ओर तथा बायाँ घुटना बायीं ओर झुका कर नीचे-ऊपर करते रहें |

7. दोनों हाथ दोनों ओर पसारें। दोनों घुटने मोड़ कर एड़ियों को नितंबों के पास लावें। दोनों एड़ियों के बीच एक फुट की दूरी रहे। दोनों घुटने दायीं ओर झुकाते हुए ज़मीन से लगावें। बायीं ओर देखें। मध्य स्थिति में आकर घुटनों को बायीं ओर भी झुकावें। दायीं ओर देखें।

8. दोनों हाथ दोनों ओर पसारें | दोनों पैर सीधे रख कर मिलावें। दायाँ पैर हुए ज़मीन से लगावें। दायीं ओर ‘ देखें। मध्यम स्थिति में आकर बायाँ पैर उठा कर दायीं ओर झुकावें । ज़मीन से लगावें | बायीं ओर देखें|

9. दोनों हाथ दोनों ओर पसार कर दोनों पैर सीधे मिला कर भर सक ऊपर उठावें | दोनों पैर दायीं ओर झुकावें। ज़मीन से लगावें। बायीं ओर देखें। मध्यस्थिति में आकर दोनों पैर बायीं ओर झुकावें। जमीन से लगावें । दायीं ओर देखें।

लाभ –
रीढ़ की हड़ी बलिष्ठ होगी | रीढ़ की हड़ी की समस्याएँ सुलझेगी। कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायता मिलेगी। कमर दर्द, गर्दन दर्द तथा स्पांडलाइटिस दूर करने में मेरुदंडासन बड़ा सहायक सिद्ध होगा। उदर के अंदर के सभी अवयव ठीक तरह से काम करेंगे | यह कई आसनों का अदभुत संपुट है|


11.सेतु बंधासन

इस आसन में शरीर की स्थिति पुल की भांति रहती है| इसलिये यह आसन सेतु-बंधासन कहलाता है।

विधि –
पीतु के बल लेट कर दोनों से नितंबों का स्पर्श करें | दोनों हाथों से दोनों एड़ियाँ पकड़े। पैर की उंगलियों, कंधों और सिर के पिछले भाग को ज़मीन पर टिकावें। सांस लेते हुए जाँघों, कमर, पेट तथा छाती को ऊपर उठावें। इस स्थिति में थोड़ी देर रह कर सांस छोड़ते हुए उन्हें नीचे उतारें।

दो तीन बार यह क्रिया करने के बाद ऊपर उठे हुए शरीर को इधर-उधर दायें बायें 5 या 6 बार हिलावें |

लाभ –
रीढ़ की हड़ी, कमर, जांघ तथा पिंडलियों को बल मिलेगा।


12. सर्वागासन

यह सभी अवयवों के लिए उपयोगी है| इसलिए यह सर्वागासन कहलाता है|

विधि –
यह आसन पाँच स्तरों में करना चाहिए |

1. पीठ के बल लेट कर घुटनों को मोड़ते हुए एड़ियों से नितंबों का स्पर्श करें।

2. दोनों घुटनों को पेट की ओर ले आवें।

3. थोड़ा सा झटका देकर कमर ऊपर उठाते हुए उसे दोनों हाथों से मज़बूती से पकड़ें। कंधे और सिर ज़मीन पर टिका रखें।

4. तीसरी स्थिति में ही रहें और दोनों पैर ऊपर उठावें।

यह सवांगासन की चरम स्थिति है।

5. (अ) सर्वागासन की चरम स्थिति में बैलेन्स ठीक रहे। दोनों पैरों को दूर करें और फिर पास लावें | इस तरह 5-6 बार करें।

(आ) एक पैर ऊपर और एक पैर नीचे उठाते उतारते रहें।

(इ) दोनों पैरों को साइकिल के पैडल की तरह घुमावें।

सांस सामान्य स्थिति में रहे। अांखें बंद रखें | दो मिनट के बाद जिस प्रकार 1, 2, 3, 4 के स्तर में ऊपर गये, उसी प्रकार 4, 3, 2 1 स्तर में नीचे आ जावें और आराम लें। सारे शरीर पर ध्यान दें |

लाभ –
सर्वागासन बड़ा उपयोगी है| अत: छोटे-बड़े और स्त्री-पुरुष सभी यह आसन कर सकते हैं। इस आसन से मस्तिष्क, फेफड़े और हृदय मज़बूत होते हैं। रक्त की शुद्धि होती है। आँख, नाक एवं मुँह से संबंधित बीमारियाँ दूर रहती हैं। पाचन शक्ति की वृद्धि होती है|वजन नियंत्रण में रहता है। गर्दन के ऊपरी भाग, नाडियों तथा नसों को शक्ति मिलती है। मस्तिष्क की कमज़ोरी दूर होती है। स्मरण शक्ति बढ़ती है। भय दूर होता है | विद्यार्थियों के लिए यह आसन बड़ा उपयोगी है।

आसन की विशेषता –
आम तौर पर सिर ऊपर और पैर नीचे रहते हैं। परन्तु इस आसन में सिर नीचे की तरफ रहता है। इसलिए शुद्ध रक्त का प्रसारण सिर की ओर अधिक होता है| इस आसन के बाद पेट के बल लेट कर किया जाने वाला भुजंगासन अवश्य करना चाहिए।

निषेध –
गर्भिणी स्त्रियाँ अधिक रक्त चाप वाले, हृदय रोगी, जिनके कानों से पीब बहता हो, अधिक जुकाम से पीड़ित, गर्दन संबंधी दर्द और स्पांडिलाइटिस वाले यह आसन न करें। उपर्युक्त व्याधियों के दूर होने के बाद यह आसन किया जा सकता है।


13. पद्म सर्वागासन या ऊध्र्व पद्मासन

इस आसन में सर्वागासन एवं पद्मासन दोनों हैं। इसीलिए यह पद्म सर्वागासन कहलाता है|

विधि –
सवांगासन की स्थिति में ही रह कर घुटनों तक पैरों को मोड़ कर, पद्मासन करें। सर्वागासन करते हुए बीच में ऐसा अभ्यास करें। इसके बाद पद्मासन छोड़ दें। सर्वागासन करते हुए नीचे आकर शवासन करें। शरीर न लुढ़के। बैलेन्स ठीक रहे | सारे शरीर पर ध्यान दें | बाद में भुजंगासन करें |

लाभ –

वाले) पद्मासन से मिलनेवाले सभी लाभ इस पद्म सर्वागासन से मिलेंगे। शारीरिक एवं मानसिक अस्थिरता दूर होगी।

निषेध –
अधिक रक्त चाप, हृदय दर्द गर्दन दर्द तथा स्पोडलाइटिस से पीड़ित लोग यह आसन न करें। गर्भिणी स्त्रियां न करें |


14. हलासन

इस आसन में शारीरिक स्थिति हल की तरह रहती है| इसीलिए यह हलासन कहलाता है। यह सर्वागासन के बाद किया जानेवाला कठिन आसन है।

विधि –
सर्वागासन की स्थिति में सीधे उठे हुए पैरों को कमर से नीचे की ओर झुकाएं। सिर ज़मीन पर रखते हुए पैरों की उंगलियों से ज़मीन का स्पर्श करें। हाथ को सीधे ज़मीन पर रखें। सांस सामान्य रहे। कुछ देर बाद दोनो टखनों को पकड कर आगे-पीछे झूले |

दो मिनट तक यह आसन स्थिर रूप से कर, सर्वागासन करते हुए पैर नीचे वापस ले आवें। आराम लें। रीढ़ की हड़ी और गर्दन पर ध्यान दें | बाद में मत्स्यासन तथा भुजंगासन करें |

लाभ –
मधुमेह एवं हर्निया से पीड़ित रोगी स्वस्थ होते हैं। निस्संतान स्त्रियों के लिए यह आशाजनक है। उदर के रोग दूर होते हैं। रीढ़ की हड़ी ठीक होती है। यह नितंबों, कूल्हों तथा कमर को पुष्ट करता है| सभी ग्रंथियों में चुस्ती आती है।

निषेध –
गर्भिणी स्त्रियाँ अधिक रक्त चापवाले छाती दर्दवाले कानों में पीब से पीड़ित, अधिक जुकाम से त्रस्त, गर्दन संबंधी दर्दवाले और स्पांडलाइटिस के रोगी यह आसन न करें।


15. कर्ण पीड़ासन

इस आसन में कान दबाये जाते हैं। इसलिए यह कर्ण पीड़ासन कहलाता है।

विधि –
हलासन (नं. 14) की स्थिति में रह कर दोनों घुटने नीचे की ओर मोड कर ज़मीन पर रखते हुए उनसे कानों को दबावें। फिर थोड़ी देर के बाद धीमे से हलासन एवं सर्वागासन करते हुए शवासन की स्थिति में विश्राम करें। कानों पर ध्यान बनाये रखें। भुजंगासन करें |

लाभ –
सवांगासन तथा हलासन के सभी लाभों के अलावा कानों की तकलीफों एवं बहरापन का शमन होता है।

निषेध –
हलासन में उल्लिखित निषेध ही इसमें भी लागू हैं।


16. चक्रासन

इस आसन में शरीर चक्र की तरह गोल रहता है| इसलिए यह आसन चक्रासन कहलाता है।

विधि –
पीठ के बल लेटें। दोनों घुटने मोड़ कर दोनों एड़ियों से दोनों नितंबों का स्पर्श करें। दोनों कुहनियाँ मोड़ते हुए दोनों हथेलियाँ कानों के पास लाकर जमीन से लगावें। ऊँगलियाँ कंधों की ओर रखें। दोनों हथेलियाँ और दोनों पाँव ज़मीन पर सटा कर साँस लेते हुए सारे शरीर को गोलाकार में ऊपर उठावें। थोड़ी देर तक इस प्रकार रहें, फिर सांस छोड़ते हुए शरीर को धीरे-धीरे नीचे उतारें | 3 या 4 बार यह क्रिया करें | शरीर के मध्य भाग पर ध्यान दें |

लाभ –
इस आसन का प्रभाव पेट तथा रीढ़ की हड़ी पर अधिक पड़ता है | आम तौर पर शरीर आगे की ओर झुका रहता है| परन्तु इस आसन में शरीर पीछे की ओर झुका रहता है| इससे रीढ़ की हड़ी, पेट, फेफड़े और हाथ स्वस्थ रहेंगे। स्त्रियों के गर्भाशय संबंधी दोष दूर होंगे। दिमाग में रक्त प्रसार ठीक तरह से होगा। सिर दर्द कम होगा। हाथों पैरों का कंपन दूर होगा| युवक-युवतियों के स्वास्थ्य पर यह आसन अच्छा प्रभाव डालेगा |

निषेध –
हृदय दर्द, अधिक रक्त चाप के रोगी एवं कमज़ोर हाथोंवाले यह आसन न करें|


17. सुप्त-चक्कीचालन क्रिया

जिस प्रकार चक्की चलाते समय हाथ घूमते हैं, उसी प्रकार इस आसन में हाथों का चालन होता है। इसीलिए यह नाम प्रचलित हुआ।

विधि –
हाथ पैर सीधे रख कर पीठ के बल लेटे। दोनों हथेलियों तथा हाथों की उंगलियों को परस्पर मज़बूती से मिलावें। मिले हुए दोनों हाथों को कमर के ऊपरी हिस्से के साथ उठाते हुए गोलाकार में घुमाते हुए बार-बार पैर छूते रहें।

8 या 10 बार एक तरफ यह क्रिया करें, फिर उसी तरह दूसरी तरफ भी करें। घुटने न उतें । न मुड़ें। पेट में ध्यान दें।

कमजोरी के कारण शरीर को पूरा आगे पीछे घुमा न सकें तो बैठे-बैठे भी यह आसन किया जा सकता है।

लाभ –
गर्दन, कमर दृढ़ होते हैं। पाचन शक्ति बढ़ती है। कब्ज कम होता है। पैरों की नसें मजबूत होती हैं।


पीठ वेत्र बल लेट कर किये जाने वाले आसनों में कुछ आसन सरल हैं। शक्ति के अनुसार इन्हें करते हुए साधक लाभ उठा सकते हैं |