हास या हँसी, आनंदासन का ही रूप है| स्वास्थ्य के लिए हँसी आवश्यक है| जब मन प्रसन्न होता है तभी हँसी आती है। सृष्टि में मनुष्य ही हँस सकता है। हँस मुख सभी को आकर्षित करता है। इसीलिए सभी लोग हंस मुख की आवश्यकता पर बल देते हैं। हँस मुख सदा पुष्प की तरह खिला रहता है।
साहित्यिक रस शास्त्र के अनुसार नवरसों में हास्य रस एक है। हास्यरस का स्थायी भाव हास है। हँसी आये तो शरीर में जो परिवर्तन होते हैं, वे अनुभाव कहलाते हैं। हँसी आ जाये तो मुँह खिलता है। आँखें आधी या पूरी मुंदती हैं। दाँत बाहर दिखायी देते हैं। खिल-खिला कर हँसने पर ध्वनि होती है। भुजाएँ फड़कती हैं। रसशास्त्र में अनुभाव छ: प्रकार के माने जाते हैं।
1. स्मित, 2. हसित, 3. विहसित, 4. अवहसित, 5. अपहसित, 6. अति हसित
1. स्मित –
यह मुस्कुराहट है। नेत्रों में थोड़ा विकास होता है। होंठ हिलते हैं। मुस्कुराहट तथा मंदहास इसके लक्षण हैं|
2. हसित –
उपर्युक्त लक्षणों के अलावा दाँत भी दिखाई देने लगते हैं।
3. विहसित –
इसमें स्मित एवं हसित के लक्षणों के साथ कंठ से मधुर ध्वनि निकलने लगती है।
4. अवहसित –
उपर्युक्त लक्षणों के अलावा आंखों में आँसू भर जाते हैं।
5. अपहसित
6. अति हसित –
उपयुक्त लक्षणों के साथ हाथ पैर हिलाते हैं। अट्टहास करने लगते हैं।
समय के अनुसार उपयुक्त हॅसी का उपयोग करते हुए साधकों तथा सभी को प्रसन्न रहना चाहिए। s
लाभ –
कष्टों, दु:खों तथा निराशा से छुटकारा मिलेगा | मन प्रसन्न होगा। पाचन क्रिया, श्वास क्रिया तथा रक्त प्रसारण आदि पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। स्थूल एवं सूक्ष्म अवयवों में चुस्ती आएगी। स्फूर्ति भरेगी। व्यक्ति का आकर्षण बढ़ेगा।
सूचना –
1. हृदय रोग, आस्थमा, अधिक रक्त चाप तथा अधिक कमजोरी से त्रस्त लोगों को अति हास नहीं करना चाहिए।
2. कमज़ोर, बीमार, दुखी, गरीब तथा वृद्धों का परिहास (मज़ाक) न करें। अपनी बराबरी के लोगों तथा मित्रों के साथ निदष परिहास का आनंद ले सकते हैं।
आज वेन वैज्ञानिकों वेत्र मतानुसार हँसी से टेन्शन कम होता है। यही वजह है कि संसार में हास्य क्लबों की संख्या बढ़ रही है। योग वेनेन्द्रों में यह आनंदासन माना जाता है और इसका अभ्यास किया जा रहा है |
यह अत्यंत आवश्यक है कि हर व्यक्ति हर दिन मुस्कुराता, हॅसता रहे, प्रसन्न रहे और आनंद का अनुभव करता रहे।
कई प्रकार के दु:ख रोने से भी कम हो सकते है। अत: इस तनाव