1. योग अभ्यास

1. योग कया है?

योग शब्द का प्रयोग भाग्य, जोड़, मिलाप नाता एवं ध्यान आदि अथाँ में किया जाता है। भाग्य के अर्थ में, जैसे-योग ठीक था, इसीलिए ग़रीब आदमी अमीर बन गया। जोड़ के अर्थ में, जैसे एक और शून्य के योग से 10, दस और पाँच के योग से 15, चार और चार के योग से 8 नाता व संबंध के अर्थ में जैसे माता-पिता, भाई-बहन, पिता-पुत्र, गुरु-शिष्य आत्मा और परमात्मा के योग व मिलाप के लिये जो प्रयास किया जाता है, उसे ध्यान कहते हैं। योग, मन की एकाग्रता पर निर्भर रहता है| एकाग्रता तभी संभव है, जबकि लक्ष्यवस्तु पर अटल विश्वास हो। ध्यान किसके लिए ? आत्मा और परमात्मा के योग के लिए। क्या यह संभव है? क्यों नहीं? यदि मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य को त्याग दे तो संभव है। योगशास्त्र के प्रयोक्ता महर्षि पतंजलि के शब्दों में योगश्चित वृत्ति निरोध: अर्थात् चित्तवृत्तियों का निरोध हो योग है।

2. योग शास्त्र की प्रमुखता

आदि मानव के जन्म के साथ ही योग विद्या का आरंभ हुआ। योग मनुष्य के जीवन का विधि – विधान है। योग का अभ्यास मनुष्य को शक्ति, तेज और चुस्ती ही नहीं देता, बल्कि उसे सुख, संतोष और आनंद भी प्रदान करता है। स्वास्थ्य ठीक न रहे, हमेशा आदमी बीमार रहे तो वह भोग-भाग्य और श्रीसंपत्ति से लाभ कैसे उठा सकेगा ?

कहा जाता है कि परमेश्वर ही, योग विद्या के प्रणेता हैं। कितने ही योगी, मुनि, ऋषि, महर्षि, ब्रह्मर्षि आदि हमारे पूर्वजोंने विश्व को योग विद्या प्रदान की | उस समय प्रचलित सभी योग क्रियाओं पर शोध कार्य कर महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन’ शीर्षक ग्रंथ की रचना की। इस दिशा में योग दर्शन’ महत्वपूर्ण प्रामाणिक ग्रंथ माना गया है| राजयोग, भक्तियोग, जपयोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग तथा हठयोग आदि सभी योग, योगशास्त्र के ही महान अंग हैं। गीताकार ने विश्व को निष्काम कर्म का संदेश दिया। मत्स्येंद्रनाथ तथा गोरखनाथने फरमाया कि इडा, पिंगला, सुषुम्ना नाडियों के सहयोग से कुंडलिनी शक्ति को जागृत करें तो जन्म धन्य होगा। इसके लिए हठयोग को प्रस्तुत किया। परन्तु धीरे-धीरे तांत्रिक और कापालिकोंने इस क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने स्त्री-पुरुष के संभोग को महत्व दिया। उसी को योग समाधि से प्राप्त होनेवाला आनंद कहा | लेकिन जनताने उसे पसंद नहीं किया| हुकरा दिया। योग शास्त्र ने आध्यात्मिकता को प्रमुखता देकर उस तत्व का विकास किया |

आधुनिक युग में योग विद्या को विज्ञान का सहयोग प्राप्त हुआ। कई मेधावी, डॉक्टर एवं विशेषज्ञों ने इस पर ध्यान दिया | योग चिकित्सा पद्धति को अपना कर लोगों के शारीरिक एवं मानसिक विकास में योग विद्या को स्थान देकर मानव जगत् का उपकार किया।

3. योगाभ्यास के उपयोग

1. हम अत्याधुनिक युग में जी रहे हैं। आज का नगर जीवन मनुष्य को इतना परेशान कर रहा है कि वह हमेशा दबाव, तनाव, नीरसता, भय, विरोधी विचार तथा स्मरण शक्ति की कमी आदि से कुंठित हो रहा है। योग के अभ्यास से ये सभी दोष दूर होंगे।

2. मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से, सुख, शांति एवं स्वस्थता प्राप्त कर, आत्मविकास के पथ पर चल कर अपने जन्म को सार्थक बना सकेगा।

3. योग विद्या से ईष्र्या, द्वेष, स्वार्थ तथा आवेश आदि दुष्प्रवृत्तियाँ शांत होंगी। मनुष्य पूर्ण स्थिरता प्राप्त कर सकेगा।

4. मधुमेह, आस्थमा, अधिक रक्त चाप, छाती दर्द, कमर दर्द, घुटना/ जोडों के दर्द, अजीर्ण आदि अनेक नये तथा दीर्घकालीन रोगों से साधक मुक्ति पाएगा। उसका शरीर स्वर्ण की भांति चमकेगा।

5. महिलाएँ योगाभ्यास करें तो स्वस्थ होंगी। उनकी सुंदरता बढ़ेगी।
को अनुशासन के मार्ग पर चला कर उन्हें उत्तम नागरिक बनाएंगी।

6. योगाभ्यास का आरंभ करते ही व्यक्ति को दिन चर्या, उसके सोचने की पद्धति, उसकी आदतें तथा उसके आहार – विहार आदि में सात्विक परिवर्तन होगा। तामसी एवं राजसी वृत्तियाँ कम होंगी। इससे योग साधना करनेवाले व्यक्ति अच्छे इन्सान बन कर देश और विश्व का कल्याण करेंगे |

7. योगाभ्यास करनेवाले साधक अपने दैनिक कार्यक्रमों में चुस्त एवं तेज़ रह कर सभी की प्रशंसा के पात्र बनेंगे। `योग सु कर्मशु कौशल’ वाली सूक्ति को आचरण में लाकर यशस्वी बनेंगे।

4. योगाभ्यास के नियम

1. रोज रात में जल्दी सोना चाहिए। सूर्योदय से पहले ही उठ कर (दो-तीन ग्लास पानी पी कर) मल-मूत्र का विसर्जन कर दांत और मुंह साफ कर, स्नान कर के खाली पेट योग का अभ्यास करना चाहिए।

2. स्नान किये बिना भी योग का अभ्यास कर सकते हैं। पर योगाभ्यास के तदनंतर थोड़ी देर रुक कर स्नान करें।

3. जहाँ खुली हवा और रोशनी आवे ऐसे समतल भूमिवाले कमरे में, जिसकी खिड़कियाँ खुली हुई हों, योग का अभ्यास करना चाहिए। सबेरे प्रसारित होनेवाली सूर्य रश्मि में योग का अभ्यास करना सभी दृष्टियों से लाभदायक है।

4. धरती या फर्श पर योग न करें। कालीन या कंबल या स्वच्छ कपड़ा बिछा कर उस पर बैठ कर ही योग का अभ्यास करना चाहिए।

5. घर में पुरुष जाँधिया पहन कर योग का अभ्यास करें और महिलाएं कम कपड़े विशेषकर पंजाबी पोशाक पहनें तो ठीक होगा। यदि खुली जगह योग का अभ्यास करें तो ढीले कपड़े पहनना आवश्यक है|

6. योगाभ्यास करते समय मल-मूत्र का विसर्जन आवश्यक हो तो अवश्य करना चाहिए। जबर्दस्ती उन्हें रोकना नहीं चाहिए। डकार, छीकें तथा खांसी आदि आवे तो उनको भी न रोकें | प्यास लगे तो थोड़ा सा पानी पीना चाहिए।

7. जल्दबाजी और थकावट के बिना योग का अभ्यास करना चाहिए। थकावट महसूस हो तो थोड़ी देर शवासन या निस्पंद भावासन कर आराम लेना चाहिए|

8. जहाँ तक संभव हो हर दिन योग का नियमित अभ्यास करते रहना चाहिए।

9. योगाभ्यास करते समय मन को यौगिक क्रियाओं पर केन्द्रित करें।

10. दूसरे विचारों को रोकना चाहिए।

11. योगाभ्यास की समाप्ति के बाद मूत्र विसर्जन करना चाहिए। इससे शरीर का कालुष्य बाहर निकल जाएगा।

12. योगाभ्यास के समय पसीना आवे तो कपड़े या हाथों से उसे पोंछ लेना चाहिए। हवा से पसीना सूख जाये तो और भी अच्छा है।

5. योग संबंधी निषेध

1. ऋतुमती या गर्भिणी स्त्रियों को योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। वे सूक्ष्मयोग क्रियाएँ तथा ध्यान कर सकती हैं।

2. सख्त बीमार पड़े, आपरेशन हुआ हो और यदि हड़ियों के टूटने से उन पर पड़ी बांधी जाय तब योग का अभ्यास न करें | स्वस्थ होने के बाद विशेषज्ञों की सलाह लेकर योगाभ्यास किया जा सकता है|

3. 8 बरस की आयु तक के बालक-बालिकाओं से जबर्दस्ती योग का अभ्यास नहीं कराना चाहिए। हँसते खेलते अपने आप कर सकते है।

4. गंदी जगह, जहां धुआँ तथा बदबू हो वहाँ योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

5. तेज हवा या तूफानी मौसम में खुले स्थान में योग अभ्यास मना है।

6. योग का अभ्यास प्रारंभ करते समय योग विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

6. योगाभ्यास के अवरोध या योग-मल

महर्षि पतंजलि ने अपने योग दर्शन में योगाभ्यास के अवरोधों के बारे में कहा कि व्याधि स्त्यान, संशय प्रमादालस्या विरति भ्रांति दर्शनालब्धि भूमिकत्वा नवस्थित्वानि चित्त विक्षेपाः तेन्तरायाः अर्थात् व्याधि, भूमिकत्व तथा अनवस्थित्व नामक नौ अवरोधों को त्याग देना चाहिए-बचना चाहिए |

ये नौ अवरोध योग – मल माने जाते हैं |

1. व्याधि: शारीरिक रोग और व्याधियाँ |

2. स्त्यान: योग साधना के लिए आवश्यक शक्ति का अभाव |

3. संशय: योग की साधना के बारे में शंकाएँ |

4. प्रमाद : यम, नियम आदि योग के अंगों का पालन न करना |

5. आलस्य: सुस्ती, थकावट या लापरवाही के कारण योग की साधना न कर पाना |

6. अविरति: अन्य विषयों में लीन होकर योग साधना पर ध्यान न देना या उससे विरत होना |

7. भ्रांति दर्शन: योग अभ्यास के विवरणों के बारे में साधक का भ्रांत होना |

8. अलब्ध भूमिकत्व: योगाभ्यास करते रहने पर भी मन का उस उच्च स्तर पर पहुँच न पाना।

9. अनवस्थितत्व: यद्यपि मन उच्च स्तर पर पहुँचता है, तथापि वहाँ वह स्थिर नहीं रह पाता।




उपरोक्त अवरोधों को दूर कर सवें, तो साधक योगाभ्यास वे? द्वारा पूर्ण लाभ उठा कर अपना जीवन धन्य बना सकते हैं।