भारत पुरुष प्रधान देश है। यद्यपि आबादी में स्त्रियों की संख्या आधी है, तथापि यहाँ पुरुषों की ही अधिक प्रधानता है। कहना ही पडेगा कि हक एवं अधिकार पुरुषों के ही अधिक हैं। स्त्रियों के कम हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी स्त्रियाँ पीछे ही है। हमारे देश की स्त्रियों से पश्चिमी देशों की स्त्रियाँ सभी क्षेत्रों में तरक्की कर चुकी हैं। वास्तव में रित्रयों की प्रगति के लिए उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता की बड़ी आवश्यकता है। जब स्त्रियाँ आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी बनेंगी, तब सभी तरह के अधिकार उन्हें अपने आप ही मिल जायेंगे। हमारे देश की अधिकांश स्त्रियाँ आर्थिक दृष्टि से पिछड़ी हुई हैं। स्वास्थ्य की भी यही बात है | घर के काम काज तक ही स्त्रियां सीमित कर दी गयी हैं। इसलिए यहाँ आम जनता समझती है कि स्त्रियाँ को शारीरिक रूप से बलवान बनने की जरूरत नहीं है। इसीलिए व्यायाम, कसरत और क्रीडाएँ आदि क्षेत्रों में स्त्रियों की भागीदारी पर बहुत कम ध्यान दिया गया।
स्त्रियों में भी यह भावना प्रचलित है कि घरेलू काम काज से ही जब छुट्टी नहीं मिलती तो योगासन और व्यायाम आदि कब करें ? स्त्रियों के लिए सुंदरता मुख्य है। शादी के पहले कन्या स्वस्थ, कोमल एवं सुंदर रहती है। लेकिन शादी होने के बाद जब दो तीन बच्चे पैदा होते हैं, तब उस कन्या का रूप बदल जाता है| जवानी में ही लगता है कि उसकी उम्र ढल गयी है| सच तो यह है कि कन्याएँ कमज़ोर हो रही हैं। इस स्थिति में परिवर्तन लाना चाहें तो स्त्रियों के लिए योगाभ्यास अत्यंत आवश्यक हो जाता है। स्कूलों में आजकल जो ड्रिल सिखाते हैं, वह काफी नहीं हैं।
आजकल योग केन्द्रों में भर्ती होकर महिलाएँ योगाभ्यास कर रहीं हैं। इससे उनका स्वास्थ्य ही नहीं सुधर रहा है बल्कि उनकी जीवन पद्धति में भी परिवर्तन आ रहा है| एक स्त्री योग विद्या सीख ले तो उसका सारा परिवार योग विद्या अवश्य सीखेगा। इस प्रकार हर गृहिणी पढ़ लिख कर योगाभ्यास में प्रवीण बने और स्वस्थ रहे तो आज के समाज का स्वरूप ही बदल जायेगा |
कुछ लोगों का ख्याल है कि योगाभ्यास स्त्रियों के लिए हानिकारक है| यह गलत धारणा है। पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन तथा धनुरासन स्त्रियों के गर्भाशय संबंधी व्याधियों को दूर करने में सहायक बनते हैं। सर्वागासन, हलासन तथा शवासन से हिस्टीरिया दूर होती है।
योगाभ्यास के आरंभ में स्त्रियों को सरल योगासन करना चाहिए। बाद कठिन आसन भी कर सकती हैं। इससे स्त्रियों का अपना स्वास्थ्य ही नहीं सुधरता, बल्कि दूसरी स्त्रियों को भी सिखा कर वे उन्हें अच्छा मार्ग दिखा सकती हैं।
योगाभ्यास करनेवाली स्त्रियों को निम्नलिखित बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
1) ऋतुस्राव के समय योगाभ्यास नहीं करना चाहिए। उन तीन-चार दिनों में अवश्य आराम लें। सूक्ष्म योग व ध्यान साधना कर सकती हैं |
2) सामान्य स्थिति में शिशु को जन्म दें तो वह महिला प्रसूति के 45 दिनों के बाद से सरल योगासनों से शुरुआत कर सकती हैं।
3) आपरेशन से शिशु को जन्म देनेवाली महिलाएं 3 या 4 महीनों तक योगाभ्यास न करें। घर में इधर-उधर घूमती, फिरती रहे। बाद योगाभ्यास शुरू कर सकती हैं|
4) सूर्य नमस्कार स्त्रियों के लिए वरदान ही हैं। शारीरिक अवयव बलिष्ठ बनते हैं। परन्तु ऋतुस्राव के समय तथा गर्भधारण करने पर स्त्रियों को सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
5) गर्भिणी स्त्रियाँ विशेषज्ञों के मार्ग दर्शन में सरल योगासन कर सकती हैं। आठवें मास से सूक्ष्मयोग क्रियाएँ ही वे करें। ध्यान साधना निरंतर करें | इसका उत्तम लाभ शिशु को भी मिलेगा |
संपूर्ण स्वास्थ्य एवं मानसिक विकास के सहायक कई विषय हैं। उनमें योग प्रमुख माना जा सकता है। योग की साधना यह साबित कर रही है कि पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति एवं स्मरण शक्ति के विकास में उम्र पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। 8 बरस की लड़कियों से लेकर 80 बरस की महिलाएँ भी योग की साधना में अपना प्रावीण्य प्रदर्शित कर रही हैं| यह बड़े महत्व का विषय है |
इसके पहले समझा जाता था कि योग केवल पुरुषों तक ही सीमित है। परन्तु आज इस क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन हो गया है। आज महिलाएँ भी योग साधना में अपनी प्रतिभा ही नहीं, शक्ति सामथ्र्य भी प्रकट कर रही हैं। अांध्र-प्रदेश की महिलाएं प्रदेश स्तर के योगासनों की स्पर्धाओं में विजय पदक प्राप्त कर यह स्पष्ट कर रही हैं कि स्त्रियाँ योगासनों में भी आगे बढ़ चुकी हैं।
हमारा सभी लोगों से अनुरोध है कि जो भी लड़कियाँ या स्त्रियाँ योगाभ्यास करने की इच्छुक हों उन्हें पूरी सुविधा प्रदान की जाये, जिससे हमारी आनेवाली पीढ़ी का भविष्य उज्वल हो सके।