- परिचय
- 1. आरोग्यामृतम (पावडर)
- 2. मनसामृतम् (पावडर)
- 3. श्वासनामृतम् (पावडर)
- 4. केशामृतम् (पावडर व तेल) बाह्य उपयोग
- 5. उदरामृतम् (पावडर)
- 6. सौदर्यामृतम् (गोलियाँ)
- 7. दंतामृतम् (पावडर) बाह्य उपयोग
- 8. अमृत तैलम् (बाह्य उपयोग)
- 9. च्यवनप्रशावलेह
- 10. त्रिफला चूर्ण
- 11. आमला चूर्ण
जड़ी बूटियों से बनी हमारी दिव्य औषधियों में से एक औषध है आरोग्यामृतम्। उसके बारे में 8वें अध्याय में विस्तार से लिखा गया है| वर्षों से हम इस दिशा में शोध कार्य करते रहे हैं। उस अनुभव के आधार पर हमने कई अन्य आयुर्वेदिक औषधों का भी निर्माण किया और हजारों रोगियों को दिया। विभिन्न रोगों को दूर करने में सफलता पायी | अांध-प्रदेश सरकार के संबंधित विभागने हमारी दवाओं की जाँच पड़ताल कर हमें मान्यता पत्र प्रदान किया | हमारा यह शोध कार्य निरंतर चल रहा है|
हमारे औषधों का विवरण
1. आरोग्यामृतम (पावडर)
प्रयोग की विधि : एक चम्मच भर पावडर 100 मिलीमीटर पानी में मिलावें। जब तक आधा जल कम न हो, तब तक उसे खूब गरम करें। रात भर उसे वैसे ही रख दें। दूसरे दिन सबेरे उसे छान कर खाली पेट पीलें। कम से कम 41 दिन इस दवा का उपयोग करें। इसके बाद भी इस दवा का उपयोग करते रहें, तो स्वास्थ्य टीक रहेगा। यह दवा लेने के बाद थोड़ी देर योगाभ्यास या व्यायाम करें तो ज्यादा प्रयोजन होगा। आधे घंटे के बाद दूध पी सकते हैं। आहार ले सकते हैं।
लाभ :
निषेध –
बैंगन, चने के आटे से बने पदार्थ, मछलियाँ तथा अचार त्याज्य हैं।
सूचना –
(1) चर्म संबंधी रोगों पर इस दवा का डिकाशन लगावें तो चर्म रोग दूर होंगे |
(2) गले मुंह या दाँतों संबंधी रोग हों तो डिकाशन मुँह में भर कर गरारा कर उसे कुल्ला कर दें।
2. मनसामृतम् (पावडर)
प्रयोग की विधि :
रोज सोने से 5 मिनट पूर्व आधा चम्मच पावडर थोड़े पानी में डाल कर मिलावें और पीलें । बाद और थोड़ा पानी पीकर सो जावें।
लाभ :
निषेध :
बैंगन, मछलियाँ तथा अचार त्याज्य हैं।
सूचना :
नेति क्रियाएँ – प्राणायाम-ध्यान तथा योगासनों के अभ्यास से इस दवा का प्रभाव बढ़ता है|
3. श्वासनामृतम् (पावडर)
प्रयोग की विधि :
हर दिन दुपहर या रात के भोजन के पहले आधी चम्मच पावडर शहद में मिला कर चाट लें । शहद न हो तो थोडा हल्का गरम जल मिला सकते हैं।
लाभ :
अस्थमा, सरदी, खांसी, एलर्जी, श्वास संबंधी रोग दूर होंगे।
निषेध :
आईस्क्रीम, कूलड्रिक्स, मसालेदार पदार्थ, केले, मछलियाँ, मांस तथा आचार त्याज्य हैं।
सूचना :
धौति, नेति, वस्ति क्रियाएँ लाभकारी होगी |
4. केशामृतम् (पावडर व तेल) बाह्य उपयोग
प्रयोग की विधि :
एक लोहे के कटोरे में थोड़ा पानी भर कर, उसमें आवश्यकता के अनुसार एक-दो चम्मच केशामृतम् पावडर डालें। उसे पानी में मिला कर रात भर उसे वैसे ही रहने दें। दूसरे दिन सबेरे कटोरे में थोडी बूंदें पानी डालें। उसे चिकना बना कर केशों में इस प्रकार लगावें कि हर केश की जड़ तक वह जा सके। आधे घंटे के बाद सिर से स्नान करें। आवश्यकता समझें तों अच्छे साबुन का उपयोग करें। स्नान के बाद केशमृतम् तेल केशों में लगावें। हफ्ते में दो तीन बार ऐसा करें | यह तेल अलग से रोज लगायें |
लाभ –
केशों का झड़ना, केशों का सफेद हो जाना, तथा सिर चर्म संबंधी रोग दूर होंगे। रूसी (डेन्ड्रफ) दूर होगी | मस्तिष्क की गरमी तथा क्रोध कम होंगे।
निषेध –
मसाले तथा मसालेदार पदार्थ त्याज्य हैं |
सूचना –
सर्वागासन, भुजंगासन, शवासन, नेतिक्रियाएँ उपयोगी हैं।
5. उदरामृतम् (पावडर)
प्रयोग की विधि :
दुपहर या रात के भोजन के बाद आधा चम्मच पावडर छाछ में मिला कर पी लें। छाछ न हो तो पावडर मुँह में डाल कर चबावें। थोडा पानी पीलें ।
लाभ –
अजीर्ण, अस्वाद, कब्ज, एसिडिटी, गैस्ट्रिक ट्रबुल्स, बवासीर तथा उदर संबंधी रोग दूर होंगे।
निषेध –
भारी भोजन, रात में देर से भोजन करना त्याज्य हैं|
सूचना –
योगासन, प्राणायाम तथा धौति क्रियाएँ उपयोगी हैं।
6. सौदर्यामृतम् (गोलियाँ)
प्रयोग की विधि –
आहार खाने के बाद सबेरे, दुपहर, रात में एक-एक गोली मुँह में डाल कर चबा कर थोड़े कुनकुने पानी के साथ निगलें।
लाभ –
मोटापा कम होगा। शरीर की सुंदरता बढ़ेगी। वात संबंधी घुटने आदि के दर्द कम होंगे |
निषेध –
मिठाइयाँ, मांस, भारी भोजन त्याज्य हैं|
सूचना –
शारीरिक श्रम करना चाहिए। योगासन, प्राणायाम, ध्यान षट् क्रियाएँ सूर्यनमस्कार, उपयोगी हैं। सप्ताह में कभी भी एक समय का भोजन छोडते रहें।
7. दंतामृतम् (पावडर) बाह्य उपयोग
प्रयोग की विधि :
सबेरे और रात में इस पावडर से दंतमंजन करें। ब्रश या मध्य उगली का उपयोग कर सकते हैं।
लाभ :
दांतों के दर्द, मसूढ़ों के दर्द, मुँह की बदबू पयोरिया, दंतक्षय, दांतों का हिलना आदि व्याधियाँ दूर होंगी।
सूचना –
इसके प्रयोग के पूर्व आरोग्यमृतम् का डिकाशन मुँह में डालकर कुल्ला कर थूक दें। योगासन तथा षटक्रिया उपयोगी हैं।
8. अमृत तैलम् (बाह्य उपयोग)
प्रयोग की विधि –
शरीर में जहाँ दर्द हो वहाँ अमृततैलम कुनकुना गर्म कर लगावें | ऊँगलियों से 10 मिनट तक मालिश करें।
लाभ –
शारीरिक दर्द, जोड़ों का दर्द, वात संबंधी दर्द तथा चोट लगने पर होनेवाले दर्द दूर होंगे।
सूचना-
सरल योगासन, प्राणायाम, ध्यान, मर्दन तथा चुंबक चिकित्सा उपयोगी हैं।
9. च्यवनप्रशावलेह
प्रयोग की विधि –
एक छोटा चम्मच भर लेहय। सबेरे और रात में सोने के पूर्व चबा कर एक गिलास गरम दूध पीवें । गरम दूध के साथ ही लेहय चबावें तो फायदा होगा |
लाभ –
यह संपूर्ण आरोग्य वर्धक, शक्ति वर्धक, और बल प्रदायक लेहड्य है| इससे शरीर की कांति और धातु शक्ति बढ़ेगी। बुढ़ापा पास नहीं फटकेगा। कंठस्वर ठीक रहेगा। हृदय मजबूत होगा। एलर्जी, खांसी, अस्थमा, नसों की दुर्बलता तथा वात पित्त व्याधियाँ कम होंगी |
निषेध –
अचार, मसाले तथा रात में देर से भोजन करना त्याज्य हैं। मधुमेह के रोगी इसका उपयोग न करें।
सूचना –
योगासन, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार उपयोगी हैं।
10. त्रिफला चूर्ण
प्रयोग की विधि –
आधी छोटी चम्मच भर चूर्ण सबेरे खाली पेट और रात सोने के पूर्व कुनकने गरम पानी के साथ लें।
लाभ –
नित्य प्रयोग से काया कल्प हो जाता है|
सूचना –
योगाभ्यास करते रहें।
11. आमला चूर्ण
प्रयोग की विधि –
आधी छोटी चम्मच भर चूर्ण सबेरे खाली पेट और रात में सोने के पूर्व कुनकुने गरम पानी से ले।
लाभ –
यह पूर्ण रसायण है । नित्य प्रयोग नया जीवन देता है।
कम से कम 41 दिन उपयुक्त दवाओं का उपयोग अवश्य करें। उपर्युक्त विवरण वे अनुसार, हमारी इन दवाओं का आप स्वयं ही उपयोग कर सकते हैं। आवश्यक हो तो सलाह व सुझाव देने वेत लिए हम सदा प्रस्तुत रहेंगे।
उपर्युक्त औषधियों वे अलावा अन्य कुछ महत्वपूर्ण औषधों