2. अच्छी आदतें

उपजाऊ जमीन में अच्छी फसल होती है| जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए किसान बड़ी मेहनत करता है। अनुपयोगी घास फूस को उखाड़ कर फेंक देता है। खेत जीतता है| पानी देकर सींचता है| उसमें खाद डालता है| तब उपजाऊ बन कर वह जमीन फसल उगलती है|

मनुष्य का शरीर भी जमीन जैसा ही है। उसे काबू में रख कर, बुराई से बचा कर सन्मार्ग पर चलाने के लिए अच्छी आदतें सहायक बनती हैं। अच्छी आदतें शरीर और मन को योगाभ्यास के अनुकूल बनाती हैं।

हमारी आदतें अच्छी हों तो लोग हमारा आदर करते हैं। अच्छी आदतें मनुष्य को अनुशासन, सद्व्यवहार तथा अच्छा चालचलन सिखाती हैं। बचपन से बाल-बच्चों को अच्छी आदतें सिखाना माता-पिता का कर्तव्य है| लेकिन आजकल कई प्रकार भी बुरी आदतों के शिकार बन रहे हैं। ऐसी बुराई से मानव जगत की रक्षा करना सभी नागरिकों का कर्तव्य है| योग के अभ्यास से साधक अच्छी आदतें सीखते हैं।

निद्रा से संबंधित विवरणों की जानकारी हासिल कर उन्हें आचरण में लाने से योगाभ्यास अवश्य सफल बन सकता है।

1. दैनिक कार्यक्रम

स्वस्थ रहने के लिए अनुशासित दैनिक कार्यक्रम ज़रूरी है। हर दिन हम जो कार्य करते हैं वे सही ढंग से और ठीक तरीके से हों यह अत्यंत जरूरी है।

रात में जल्दी सोना चाहिए | तड़के ही जाग कर प्यास लगे या न लगे, दो-तीन गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। मल – मूत्र का विसर्जन कर, मुँह और दाँत साफ कर, मौका मिले तो टहलना चाहिए। बाद स्नान करना चाहिए। मुँह साफ करते समय कुछ लोग मुँह में पानी भर कर कुल्ला कर उसे थूक देते हैं। यह काफी नहीं है। जीभ पर जो मैल जमा होता है, उसे तीली से निकाल बाहर कर देना चाहिए। कंठ के अंदर की अलि जिह्वा (छोटी जीभ) और तालु को हाथ के अंगूठे से दो-तीन बार धीरे से रगड़े | नाखून उसे न लगे, इसकी सावधानी बरतनी चाहिए। रोज सबेरे, जीभ एवं मुंह में जमा मैल दूर होगा। कुछ भी खाने के बाद मुँह में पानी भर कर कुल्ला करना चाहिए। –

जहाँ तक हो सके, ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। बीमार पड़े या सर्दी का मौसम हो तो कुनकुने पानी से स्नान करें । स्नान करते समय शरीर का मैल दूर हो, इसके लिए पूरा प्रयत्न करना चाहिए।

यह जरूरी है कि हम जो कपड़े पहनें वे ढीले हों और धुले हुए हों। देहातों में आज भी लोग हर दिन धुले कपड़े ही पहनते हैं। पर हर जगह यह संभव नहीं है। फिर भी धुले हुए साफ कपड़े पहनना जरूरी है।

हर प्राणी के लिए नींद आवश्यक है। जो व्यक्ति गहरी नींद सोता है वह स्वस्थ होता है। यह जरूरी है कि सोने की जगह साफ सुथरी, हवादार, प्रकाश से युक्त हो और खाट, चटाई. बिछौना एवं कपड़े आदि भी साफ और स्वच्छ हों।

यह ज़रूरी है कि हम मधुर बोली बोलें, सत्य बोलें और सत्य बोलते समय कटुता न हो। यह सूक्ति सभी जानते हैं कि सत्यं वद प्रियं वद। जहाँ तक हो सके स्वार्थ वृत्ति को हम कम करें। दूसरों, विशेषकर निर्बलों और रोगियों की सेवा करें | सभी का भला करें।

हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि रात में सोने के पूर्व उस दिन के अपने कार्यों की समीक्षा करे, दैनंदिनी (डायरी) में सभी बातों और कार्यों को लिपिबद्ध करे, कल के कार्यों का भी निर्धारण कर ले। उस दिन कोई भूल- चूक हुई हो तो उस पर भी विचार करे| इस प्रकार अपने दैनिक कार्यों की समीक्षा हर व्यक्ति करता रहे तो उसका जीवन अनुशासित रहेगा | इससे देश का और विश्व का भी कल्याण होगा।

2. आहार

जीवित रहने के लिए आहार आवश्यक है। प्रकृति इस के लिए कई पदार्थ प्रस्तुत करती है। उन पदार्थों को समय पर खाते रहें तो धनिया, अदरक, प्याज, लहसुन, नींबू तथा नारियल आदि खाद्य पदार्थों का समुचित उपयोग करना चाहिए। फल अधिक खाने चाहिए। आम, जामुन, और सीताफल आदि खाने योग्य फल हैं। उन फलों का रस पिया जा सकता है| बादाम, काजू, किसमिस, सूखा द्राक्ष, अखरोट, मूंग फली, पिश्ता तथा अंजीर आदि खाने योग्य पदार्थ हैं।

अनाज बड़े परिमाण में मिलते हैं। दूध, मलाई, मक्खन, छाछ, घी, लस्सी, दही, भिन्न-भिन्न प्रकार के तेल, शहद, गुड तथा शक्कर, ताडगुड तथा गन्ना आदि मीठे पदार्थ प्रकृति की कृपा से प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग सीमित और आवश्यक मात्रा में समय पर करते रहें तो रोगों का अपने आप निवारण होता है। अंडे, मछलियाँ तथा मांस तामसी हैं। अत: उन्हें नहीं खाना चाहिए।

सेवन नहीं करना चाहिए। लड्डू, मिठाई आदि अधिक मात्रा में नहीं खाना चाहिए। उन्हें ज्यादा खावें तो हजम नहीं होते। फलस्वरूप अनेक प्रकार के रोग जकड़ लेते हैं।

कई प्रकार के अनाज पका कर या उबाल कर भी खा सकते हैं । मूंग-चनागेहूँ-मूंगफली आदि अनेक पदार्थ अंकुरित कर नाश्ते के रूप में खाने से बहुत लाभ मिलता है |

भोजन दो बार ही करना चाहिए। नाश्ता एवं भोजन के बीच चार घंटे की अवधि होनी चाहिए। सबेरे 9 बजे से 11 बजे के बीच जो लोग भोजन करते हैं उनके लिए सबेरे का नाश्ता वर्जित है। वे दुपहर को 2-3 बजे के बीच फल खा सकते हैं। फलों का रस पी सकते हैं। एक प्याला कॉफी या चाय पीसकते हैं। शारीरिक श्रम करनेवालों को आवश्यक मात्रा में खाना चाहिए। मानसिक श्रम करनेवालों को कम खाना चाहिए।

खाद्य पदार्थों को पीना है, पेय पदार्थों को खाना है ’ईट लिक्विड्स,ड्रिक संॉलिड्स’ यह सूक्ति प्रचलित है। हम जो खाना खाते हैं वह लारजल से मिल कर पेट में जा कर पचता है। अर्थात् खायी हुई चीज को चबा कर पानी के रूप में बदल कर खाना चाहिए और पानी या पेय पदार्थ को मुंह में भर कर धीरे-धीरे खाते हुए पीना चाहिए। खाद्य पदार्थ खूब चबाने से दांत और मसूढ़े मजबूत बनते हैं।

आवश्यक सूचनाएं :
1. तड़के जागते ही कम से कम दो गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए।

2. मल – मूत्र विसर्जन किये बिना कुछ भी खाना नहीं चाहिए। सबेरे मल मूत्र विसर्जन की आदत जिनकी नहीं है, उन्हें उसकी आदत डालनी चाहिए। इसके लिए तड़के दो गिलास कुनकुना जल पीना चाहिए।

3. भोजन करते समय बीच-बीच में पानी न पीएं | भोजन समाप्त होने के एक घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए।

4. योगाभ्यास या व्यायाम तथा टहलने के बाद थोड़ी देर तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए |

5. रात में भोजन खाते ही तुरंत न सोएं | भोजन और निद्रा के बीच थोड़ा समय होना आवश्यक है।

6. उपवास करते समय जलपान, नाश्ता- फलाहार ज्यादा न करें |

7. बासी या सड़ा पदार्थ नहीं खाना चाहिए।

8. आधा खराब फल, वहाँ तक निकाल कर बाकी अंश खाना मना है।

9. भोजन के पहले हाथ, मुंह एवं पैर जल से धोना चाहिए। इससे तनाव कम होगा | भोजन आसानी से पच्चेगा |

10. भोजन के समय मन का शांत रहना आवश्यक है। भोजन करते हुए मंत्रणाएँ करना, ज्यादा बोलना, बीच-बीच में फोन करना, आदि ठीक नहीं।

11. भोजन के पहले ईश्वर की प्रार्थना करना आवश्यक है| शाम के भोजन से पहले निरालंबासन अवश्य करे |

12. भोजन के बाद 10 मिनिट तक टहलना चाहिए। बाद में कम से कम 5 से 10 मिनिट तक वज्रासन करें |

3. उपवास

शरीर के जितने अवयव हैं, उनकी शुद्धि के लिए उपवास आवश्यक है। आध्यात्मिकता के विकास में उपवास का महत्व अधिक है। कुछ लोग सप्ताह में आधा या पूरा दिन उपवास करते हैं तो कुछ लोग 2 दिन उपवास करते हैं। कुछ लोग इससे अधिक दिन उपवास करते हैं।

आम तौर पर हर व्यक्ति को सप्ताह में एक दिन उपवास करना चाहिए। इससे उस दिन पाचन यंत्र को आराम मिलेगा | मिस ए मील वन्स ए वीक’ हफ्ते में एक बार भोजन त्याग दो – यह प्रचलित उक्ति है | उपवास एक तप है। उपवास के आरंभ में नींबू या फलों का रस पीना चाहिए | कच्ची तरकारियाँ उबाल कर, उबला हुआ पानी थोड़ा सा पीना चाहिए । नाश्ता नहीं करना चाहिए। उपवास के समय साधक को शारीरिक तथा मानसिक आराम लेते हुए प्रशांत रहना चाहिए | हमारे देश में प्राचीनकाल से लोग उपवास करते थे | सभी मजहबों में उपवास मान्य है | उपवास सही तरीके से करते हुए सीमित आहार लेते हुए सुखी जीवन व्यतीत किया जा सकता है।

4. पीने का पानी

भूगोल में तीन भाग पानी के हैं। एक भाग भूमि का है। इसी प्रकार शरीर भी जलमय है। जल का यह अंश कम हो तो नुकसान होगा। प्यास लगे या न लगे तो भी प्रात:काल खाली पेट दो-तीन गिलास स्वच्छ जल पीना जरूरी है | इसे उषापान कहते हैं। उषापान की आदत डालें तो मल – मूत्र विसर्जन आसानी से होगा। भोजन के पूर्व थोड़ा सा जल पीवें तो भूख ज्यादा लगती है। पानी ज्यादा पीवें तो भूख कम हो जाती है। भोजन के एक घंटे के बाद पानी पीना चाहिए। इससे भोजन पचता है। पिया हुआ पानी लार – जल के सहयोग से पचता है। दो घूंट पानी मुँह में भर कर दो तीन सेकंड उसे मुंह में रख कर धीरे-धीरे पीना चाहिए। फिल्टर किया हुआ या वस्त्र से छाना हुआ पानी पीवें तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा। गरम कर, छान कर ठंडा किया हुआ पानी पी सकते हैं। होटलों और बाजारों में जो पानी मिलता है उसे न पीवें । ऐसा पानी बेक्टोरिया को फैला कर नुकसान पहुँचाता है | इसलिए पेय जल के बारे में सावधान रहना आवश्यक है।

5. मल विसर्जन

एक दिन मल विसर्जन न कर सकें तो रोग शुरू हो जाते हैं। रोज सबेरे मल विसर्जन करना जरूरी है। ऐसी आदत न हो तो डालनी चाहिए। मल विसर्जन के लिए वमन धौतिक्रिया, वस्ति याने एनिमा क्रिया की जा सकती है। “अति सर्वत्र वर्जयेत्” इस उक्ति के अनुसार, उपर्युक्त क्रियाओं की आदत नहीं डालनी चाहिए। हर दिन समय पर आसानी से सहज रूप से मल विसर्जन हो तो लाभ ही लाभ है। मल विसर्जन के बाद मल द्वार को जल से धोकर साफ करना चाहिए। हाथों को मिट्टी या साबुन से धोना चाहिए। पाद प्रक्षालन आवश्यक है| संभव हो तो स्नान भी कर लें ।

6. मूत्र विसर्जन

मल विसर्जन के समान मूत्र विसर्जन भी आवश्यक है। पेशाब अवश्य करना चाहिए। जहाँ चाहें वहाँ पेशाब न करें । रात में सोने के पूर्व, सबेरे जागने पर, योगासन या व्यायाम करने के बाद तथा भोजन के बाद मूत्र विसर्जन अवश्य करना चाहिए। मूत्र विसर्जन के बाद लिंग, योनि तथा हाथों को जल से धो लेना चाहिए।

कहा जाता है कि हर व्यक्ति अपने मूत्र का पान करे तो रोगों का निवारण होगा। ऐसे स्वमूत्र को शिवांबु कहते हैं।

अतिमूत्र तथा मूत्र का बंद होना ठीक नहीं। अत: मूत्र विसर्जन के बारे में सचेत रहना जरूरी है | पेशाब करते समय ऊपर और नीचे के दांतों को कस कर दबा करके रखना चाहिए। इससे दाँत मजबूत रहते हैं। उस समय मुँह में कोई चीज न रहे, बात न करे, इस पर ध्यान देना चाहिए |

7. स्नान

स्वस्थ रहना हो तो हर व्यवित्त को नियमित रूप से स्नान करना चाहिए। शरीर पर जमा मैल दूर करना और मानसिक तनाव कम करना स्नान का उद्देश्य है। हर दिन सबेरे उठ कर कालकृत्य समाप्त कर स्नान करना चाहिए। कुछ लोग दिन में एक बार, कुछ लोग दो बार गर्मी के दिनों में तीन बार स्नान करते रहते हैं। आम तौर पर रोज सबेरे और शाम को दो बार स्नान करना स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित है। सबेरे के स्नान से आलस्य दूर होता है। सायं के स्नान से दिन भर की थकावट दूर होती है। अच्छी नींद आती है| नदी या नहर के जल में स्नान करना बेहतर है| तालाब, कुआँ, बोरवेल तथा नल के पानी का स्नान भी उपयोगी ही है| आज कल शहरों में नल का पानी ही मिलता है| ठंडे पानी से स्नान करना बेहतर है। बीमार पड़ने पर या सर्दी के मौसम में कुनकुना जल स्नान के लिए उत्तम है| स्नान करते समय सारे शरीर को हथेलियों से रगड़ना चाहिए। अच्छे साबुन का उपयोग किया जा सकता है। चिपकती मिट्टी या चने के आटे (बेसन) को सिर एवं बदन में लगा कर थोड़ी देर के बाद स्नान करने से बड़ा लाभ होगा। हफ्ते में एक बार सिर और बदन में तेल लगाकर सिर स्नान करना चाहिए। स्नान के आरंभ में चरण, फिर सारे शरीर पर पानी डालना चाहिए। भोजन के बाद, धूप में चल कर आने पर, दौडने और योगासन करने के बाद तुरंत स्नान नहीं करना चाहिए। स्नान के बाद सूखे वस्त्र से शरीर को पोंछ लेना चाहिए। स्नान का जल शरीर पर विशेष कर जांघों में जमा न रहे, इस पर ध्यान देना चाहिए | उससे चर्मरोगों से बच सकते हैं| यह जरुरी है कि स्नान करते समय, फिर स्नान के बाद शरीर को सर्दी न लगे | स्नान करते समय आम तौर पर सर्दी नहीं लगती। सभी लोग ये कहावतें जानते हैं कि पूरे डूबे हुए को सर्दी से क्या सरोकार? या ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या उर ?

स्नान करते ही रोम-रंध्र खुल जाते हैं। नसों में रक्त प्रसार खूब होता है। शरीर को नई शक्ति मिलती है। ओज बढ़ता है। थकावट तथा आलस्य दूर होते हैं।

8. निद्रा

शारीरिक अस्वस्थता तथा थकावट दूर करने में निद्रा का महत्वपूर्ण स्थान है| अच्छी नींद स्वस्थता की पहचान है।

आज तक किसी ने स्पष्ट नहीं बताया कि निद्रा क्या है ? निद्रा अलग है, तंद्रा व मस्ती अलग है| दोनों में अंतर है। नींद के लिए कुछ लोग गोलियाँ निगलते हैं। यह अच्छी आदत नहीं है | नींद की गोलियों से पलके जरूर लगती हैं, पर वह सच्ची नींद नहीं है। मात्र तंद्रा है। चिंताएं, मुसीबतें तथा दुख नींद के दुश्मन हैं। उनसे बचने दूर करने का प्रयास करना चाहिए। योगाभ्यास में जलनेति क्रिया, शवासन तथा योगनिद्रा की आदत डालें तो नींद आ जाती है। रात में पैरों को कुनकुने जल में डुबो कर थोडी देर रखें तो अच्छी नींद आ जाती है।

हर स्त्री और पुरुष को 7 या 8 घंटे सोना चाहिए। उम्र ढलने पर 6 से 7 घंटे सोना चाहिए। योगाभ्यास करनेवालों को 4 या 5 घंटे सोना काफी हैं। दुपहर के भोजन के बाद 15 या 20 मिनट तक बाई करवट लेट कर आराम लेना चाहिए। इससे लिवर ठीक रहता है| खाना पचता है। इसे “वाम – कुक्षि” कहते हैं।

चाहिए। इसे चन्द्रस्वर कहते हैं। बायीं ओर लेटने पर दायें नासिका रंध्र से सांस चलेगी। उसे सूर्यस्वर कहते हैं। निद्रा से जागते ही बिस्तर पर ही परमात्मा का धन्यवाद-प्रार्थना कर 7 योगासन करे | 1) निरालंबासन 2) शांत्यासन 3) सुप्त पवन मुक्तासन 4) तानासन 5) पश्चिमोतानासन 6) निस्पद भावासन 7) उत्कुट पवन मुक्तासन, ऐसा करने से सुस्ती दुर हो कर ताजगी-स्फुर्ति बढ़ेगी।

आम तौर पर सभी को रात में जल्दी सोना और सबेरे जल्दी जागना चाहिए। ऐसे लोग सदा स्वस्थ रहेंगे।

9. Thoughts :

Always be cheerful and happy. This will help your thoughts to be more positive. Negative thoughts result in negative attitude towards life which may be much harmful. One can not change whatever has already happened. Also one can not predict the future right now. So always try to live in presentense. Enjoy this very moment. This will certainly help a lot to maintain your good health, as healthy body and healthy mind go together.


अच्छी आदतों के कारण मानव जीवन सफल एवं सार्थक बन जाता है । सुख – शांति – समृद्धि – ऐश्वर्य में वृद्धि होती है ।

युक्ताहार विहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा॥